रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली और साहित्य में स्थान

Ramnaresh tripathi

रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई. को जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता पंडित रामदत्त त्रिपाठी धार्मिक एवं कर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। इनकी स्कूली शिक्षा नवीं कक्षा तक ही चल सकी। इन्होंने स्वाध्याय से ज्ञानार्जन किया। जीवन के प्रारम्भिक काल से ही ये हिन्दी की सेवा करने लगे थे।

उन्होंने साहित्य सेवा को ही जीवन का लक्ष्य बनाया। त्रिपाठी जी का काव्य आदर्शवाद की ओर उन्मुख है। छायावादी काव्य के सौन्दर्य की सूक्ष्म झलक भी यत्र-तत्र कविता में विद्यमान हैं देश-प्रेम आपके काव्य का मूल आधार है। ग्राम्य-गीतों का संकलन आपके श्रम तथा निष्ठा का प्रतीक है। मानव प्रेम के आप पक्षधर हैं। प्रकृति चित्रण के कुशल चितेरे हैं। त्रिपाठी जी ने लोकगीतों का संग्रह किया था।

रामनरेश त्रिपाठी
रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी संछिप्त परिचय 

नामरामनरेश त्रिपाठी
जन्म1889 ई०
जन्म स्थानकोइरीपुर गांव (उत्तर प्रदेश)
कविछायावादी युग के कवि
पिता का नामपंडित रामदत्त त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी की रचनाएं

पथिक, मिलन (खंडकाव्य), वीरांगना लक्ष्मी (उपन्यास), सुभद्रा जयंत (नाटक), स्वप्नों के चित्र (कहानी संग्रह)
भाषाखड़ी बोली
शैलीवर्णनात्मक, उपदेशात्मक
साहित्य में योगदानहिंदी का प्रचार-प्रसार, ‘हिंदी मंदिर’ की स्थापना कर साहित्य में बहुमूल्य योगदान दिया।
मृत्युवर्ष 1962

 

रामनरेश त्रिपाठी की रचनाएं

त्रिपाठी जी प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे। उन्होंने काव्य,नाटक,कहानी, निबन्ध और आलोचना सम्बन्धी अनेक कृतियाँ लिखीं। इनकी रचनाएँ निम्नांकित हैं

मुक्तक – मारवाड़ी मनोरंजन,  आर्य संगीत शतक, कविता विनोद, क्या होम रूल लोगे, मानसी

काव्य प्रबंध – मिलन, पथिक, स्वप्न

कहानी – तरकस, आंखों देखी कहानियां, स्वप्नों के चित्र, नखशिख, उन बच्चों का क्या हुआ, 21 अन्य कहानियां

उपन्यास – वीरांगना, वीरबाला, मारवाड़ी और पिशाचनी, सुभद्रा और लक्ष्मी, दिमागी ज्यासी, सपनों के चित्र

नाटक – जयंत, प्रेमलोक, वफाती चाचा, अजनबी, पैसा परमेश्वर, बा और बापू, कन्या का तपोवन

रामनरेश त्रिपाठी की काव्यगत विशेषताएँ

(अ) भावापक्ष (भाव तथा विचार) – रामनरेश त्रिपाठी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। देशभक्ति, माधुर्य, ग्राम्य जीवन, त्याग, बलिदान,प्रकृति, मानवता आदि आपके काव्य-विषय रहे हैं। उन्होंने आदर्शवादी काव्य की रचना करके देश को उत्थान की ओर प्रेरित किया है। वे रचनात्मक विचारधारा के पोषक कवि थे।

(ब) कलापक्ष (भाषा तथा शैली) – रामनरेश त्रिपाठी की भाषा शुद्ध, साहित्यिक खड़ी बोली है। इसमें व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों का अभाव ही है। इनकी भाषा विषयानुरूप बदलती रहती है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली का पर्याप्त प्रयोग किया है। आपकी शैली में माधुर्य एवं प्रवाह का अद्भुत संयोग है। वर्णनात्मकता एवं उपदेशात्मकता आपकी शैली की विशेषताएँ हैं। अलंकारों,प्रतीकों का स्वाभाविक प्रयोग आपके काव्य की प्रमुख विशेषता है।

रामनरेश त्रिपाठी की भाषा शैली

त्रिपाठी जी की भाषा भावानुकूल, प्रभाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों एवं सामासिक पदों की भाषा में अधिकता है। शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रभाहमयी है। मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है। इनका प्रकृति चित्र वर्णनात्मक शैली पर आधारित है। छंद का बंधन इन्होंने स्वीकार नहीं किया है तथा प्राचीन और आधुनिक दोनों ही छंदों में काव्य रचना की है। इन्होंने श्रंगार, शांत और करूण रस का प्रयोग किया है। अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है।

रामनरेश त्रिपाठी का साहित्य में स्थान

साहित्य में स्थान- भ्रमण तथा स्वाध्याय में संलग्न रहने वाले रामनरेश त्रिपाठी आधुनिक हिन्दी कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन्होंने देश प्रेम, संस्कृति, भारतीयता, ग्राम जीवन पर दुर्लभ साहित्य उपलब्ध कराया है। हिन्दी साहित्य को सम्पन्न बनाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। राष्ट्रीयता के पोषक साहित्यकार के रूप में उन्हें चिरकाल तक स्मरण किया जायेगा।

यह भी पढ़ें:-