रोमक कबूतर की कथा | Romak Kabootar ki story in hindi

रोमक कबूतर की कथा | Romak Kabootar ki story in hindi

हिमालय पर्वत की किसी कंदरा में कभी रोमक नाम का एक कपोत रहता था। शीलवान्, गुणवान् और अतिमान वह सैकडों कपोतों का राजा भी था। उस पहाड़ के निकट ही एक साधु  की कुटिया थी। रोमक प्राय: उस साधु  के पास जाता और उसके प्रवचन का आनन्द उठाया करता था ।

एक दिन वह साधु  अपनी उस कुटिया को छोड़ किसी दूसरी जगह चला गया । कुछ दिनों के बाद उसी कुटिया में एक पाखण्डी साधु  के भेष में आकर वास करने लगा । 

रोमक कबूतर की कथा | Romak Kabootar ki story in hindi

वह आदमी अक्सर ही पास की बस्ती में जाता, लोगों को ठगता और उनके यहाँ अच्छे-अच्छे भोजन कर सुविधापूर्वक जीवन बिताता । एक बार जब वह किसी धनिक गृहस्थ के घर में माँस आदि का भक्षण कर रहा था तो उसे कबूतर का मसालेदार माँस बहुत भाया । उसने यह निश्चय किया कि क्यों न वह अपनी कुटिया में जाकर आस-पास के कबूतरों को पकड़ वैसा ही लजीज व्यंजन बनाए ।

दूसरे दिन तड़के ही वह मसाले, अंगीठी आदि की समुचित व्यवस्था कर तथा अपने वस्रों के अंदर एक मजबूत डंडे को छिपा कर कबूतरों के इंतजार में कुटिया की चोटी के सामने पर ही खड़ा हो गया । 

कुछ ही देर में उसने रोमक के नेतृत्व में कई कबूतरों को कुटिया के ऊपर उड़ते देखा । पुचकारते हुए वह नीचे बुलाने का प्रलोभन देने लगा । मगर चतुर रोमक ने तभी उस कुटिया से आती हुई मसालों की खुशबू से सावधान हो अपने मित्रों को तत्काल वहाँ से उड़ जाने की आज्ञा दी । 

कबूतरों को हाथ से निकलते देख क्रोधवश रोमक पर अपने डंडे को बड़ी जोर से फेंका किन्तु उसका निशाना चूक गया । वह चिल्लाया, “अरे! जा तू आज बच गया ।”

तब रोमक ने भी चिल्ला कर उसका जवाब दिया, “अरे दुष्ट! मैं तो बच गया किन्तु तू अपने कर्मों के फल भुगतने से नहीं बचेगा। अब तू तत्काल इस पवित्र कुटिया को छोड़ कहीं दूर चला जा वरना मैं बस्ती वालों के बीच तुम्हारा सारा भेद खोल दूँगा ।

रोमक के तेजस्वी वचनों को सुन वह पाखण्डी डर गया और उसी क्षण अपनी  गठरी लेकर वहाँ से कहीं और खिसक गया ।

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