Wednesday, June 7, 2023

हिंदी कहानी सूर्य और संज्ञा

हिंदी कहानी सूर्य और संज्ञा, सूर्य  का तेज संपूर्ण सृष्टि के जीवन का आधार है। वह संपूर्ण  सृष्टि को जीवन देता है। तभी तो भोर होते ही सभी जीवधारी जीवन ऊर्जा के लिए उनकी ओर ताक में लगते हैं। सूरजमुखी का फूल तो सूर्य की गति के साथ ही गतिमान होता है। यदि किसी के कोमल मन पर उस परम तेजस्वी सूर्य का प्रभाव पड़ जाए तो इसे कोई अनहोनी घटना तो नहीं कहेंगे। 

देव शिल्पी विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के मन पर सूर्य ने अधिकार कर लिया था वह सूरजमुखी के फूल की तरह हर दम सूर्य को ताकते रहती थी। अपनी पुत्री की दशा देख देव शिल्पी अपनी पत्नी से बोले देखो प्रिय संज्ञा कितने प्रेम भाव से सूर्य देव को निहार रही है। हमें अपनी पुत्री से उसकी इच्छा पूछनी चाहिए सूर्य के सौंदर्य के प्रति संज्ञा का आकर्षण उसकी आयु के साथ बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन विश्वकर्मा ने संज्ञा से पूछ लिया – बेटी अब तुम सयानी हो गई हो सोचता हूं जल्दी ही तुम्हारा विवाह कर दूँ, क्या कोई देव तुम्हें प्रिय लगता है।

पिताजी सूर्य देव के प्रति मेरा आकर्षण बढ़ता जा रहा है। — संज्ञा ने उत्तर दिया

ठीक है हम सूर्य के साथ ही तुम्हारा विवाह कराए देते हैं। विश्वकर्मा बोले और अपनी पुत्री को लेकर सूर्य के पास पहुंचे उन्होंने अपनी पुत्री की इच्छा सूर्यदेव से बताई तो उन्होंने उनका प्रस्ताव हर्ष सहर्ष स्वीकार कर लिया

बोले आप की पुत्री मेरे साथ विवाह करना चाहती है यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है पर इससे यह तो पूछ ले कि यह मेरा ताप सहन भी कर पाएगी। विश्कर्मा संज्ञा को लेकर एक ओर गए और उससे पूछा सूर्यदेव का उत्तर तुमने सुन लिया बेटी अब बताओ सहन कर लोगे हर ऋतु में उनका ताप।

हां पिताजी संज्ञा ने बड़े विश्वास के साथ का कुछ ही दिन बाद संज्ञा और सूर्या की शादी हो गई और संज्ञा सूर्य देव के साथ उनके लोक चली गई पति के साथ सुखपूर्वक वक्त बीतने लगे फिर उनके यहां एक पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम रखा गया मनु अनेक ऋषि मनु बालक को आशीर्वाद देने आए यह बालक ज्ञानियों में भी ज्ञानी होगा ऋषियों ने भविष्यवाणी की आशीर्वाद सच निकला

जब वह कुछ बड़ा हुआ तो ऋषि-मुनियों से शिक्षा ग्रहण करने लगा सूर्य देव और संज्ञा को अपने बेटे पर गर्व था। एक बार सूर्य देव का तेल अपनी चरम सीमा पर जा पहुंचा संज्ञा की चमड़ी झुलसने लगी सूर्य देव ने उसे अपने पास बुलाया। संज्ञा अपनी आंखों पर हाथ रखकर उनके पास पहुंची। सूर्यदेव संज्ञा तुम अपनी आंखे खोलो और मेरी ओर देखो मैं तुम्हारा पति हूँ।

स्वामी में आपका तेज सहन नहीं कर पा रही हुँ। सूर्यदेव ने कहा विवाह से पूर्व मैंने तुमसे पूछा भी था कि क्या मेरा ताप सहन कर पाओगे तुम्हारी सहमति पाकर ही मैंने तुम्हारे साथ विवाह करना स्वीकार किया था। लेकिन अब तुम अपने वचन से फिर रही हो सूर्य देव कुछ क्रोधित होते हुए कहा स्वामी इसमें मेरा कोई दोस्त नहीं है —–संज्ञा बोली।

सूर्य देव और कुपित हो उठे। बोले —सुनो संज्ञा ! प्राणवान वस्तुओं को जीवित रखने वाला मैं ही हूं, परंतु तुमने मेरी ओर से आंखें बंद कर ली, अत: तुम्हारे गर्भ से जो बालक उत्पन्न होगा वह यम होगा। यम अर्थात मृत्यु का देवता। संज्ञा वहां से भाग जाना चाहती थी लेकिन बच्चों का मोह उसे विवश किए हुए था।

संज्ञा की एक सहचरी थी उसका नाम था छाया जो हुबहू संज्ञा के जैसी ही दिखती है। उसने छाया को बुलाया और अपनी समस्या बताएं सुनकर छाया बोली बताओ मैं तुम्हारी किस प्रकार मदद कर सकती हूँ। मेरे पति के पास जाओ और उनकी पत्नी और मेरे बच्चों की मां बन कर वहीं रहो संज्ञा ने कहा उन्होंने मुझसे पूछताछ की तो कहना मैं संज्ञा हूं, भेद मत खोलना यह सब मैं करूंगी लेकिन मेरी एक शर्त सूर्यदेव मुझे पहचान गए और तब श्राप देने लगे तो मेरा सारा भेद खोल दूंगी ! — छाया ने कहा ठीक है छाया अब जाओ और मेरे बच्चों को संभालो।

तुमने मुझे बहुत ही कठिन काम सौंपा है, संज्ञा ! फिर भी मैं भरसक प्रयत्न करूंगी, छाया बोली और वहां से चली गई। उसके जाने के बाद संज्ञा अब सोचने लगी मैं मायके जाती हूं मां और पिताजी मुझे देखकर प्रसन्न होंगे संज्ञा अपने मायके पहुंची पिता ने उसका बड़ा सत्कार किया बोले आओ बेटी सब कुशल मंगल तो है नहीं पिताजी आपने ठीक ही कहा था ग्रीष्म ऋतु में सूर्य देव का ताप सहन न कर सकी संज्ञा कुछ दिन वहां सुख से रही एक दिन पिता ने उसे कहा संज्ञा तुम्हारे आने से मुझे बड़ा हर्ष हुआ तुरंत विवाह हो जाने के बाद स्त्री को मायके में अधिक समय तक नहीं रहना चाहिए।

अब तुम अपने पति के घर जाओ फिर कभी हमसे मिलने आना तुम मुझे बहुत प्यारी हो किंतु पति का घर स्त्री का घर होता है। पिता की बात सुनकर एक रात संज्ञा चुपचाप पिता का घर छोड़ कर जंगल में चली गई वह सोचने लगे में सूर्य देव के सामने नहीं जा सकती अतः घोड़ी बन जाती हूँ उस रूप में मुझे कोई पहचान नहीं पाएगा। घोड़ी का रूप धारण करके सूर्य के ताप की शक्ति को कम करने के लिए संज्ञा तपस्या करने लगती है।

उधर छाया ने सूर्य के यहां जाकर संध्या का स्थान ले लिया था। सूर्य ने उसे संज्ञा ही समझ, वह बोले तुम लौट आई ! मुझे क्षमा कर दो स्वामी मैंने अपनी दुर्बलता को जीत लिया है। छाया — खेद भरे स्वर में बोली। मैं तो कब से क्षमा कर चुका हूं अब घर की जिम्मेदारी संभालो बच्चों का लालन-पालन करो ! सूर्यदेव ने कहा।

समय बीत गया छाया ने एक पुत्र और पुत्री को जन्म दिया अब छाया का व्यवहार बदलने लगा वह अपने बच्चों से तो प्यार करती थी लेकिन संज्ञा के बच्चों को ताड़ने और उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगी। मनु तो विमाता के दुर्व्यवहार को नजर अंदाज कर दिया, लेकिन यम को उसका व्यवहार खटकता। एक दिन यम ने अपने पिता सूर्य से माता के दुर्व्यवहार की शिकायत की तो सूर्य देव बोले मैं देख लूंगा तुम जाओ और निश्चिंत रहो सब ठीक हो जाएगा। ऐसा कहकर सूर्य ने बच्चों को धैर्य बंधाया सूर्य देव छाया के पास पहुंचे और बोले सच बताओ तुम कौन हो अन्यथा मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।

ठहरिये स्वामी भय से कांपती छाया बोली मैं संज्ञा की छाया हूं वह आप की देखभाल का भार किसी को शोपे बिना नहीं जाना चाहती थी इसलिए उसने मुझे आपके पास भेज दिया। वह कहां गई है सूर्य देव ने पूछा अपने पिता के यहां छाया बोली। सूर्य देव सीधे विश्वकर्मा के पास पहुंचे और उनसे पूछा संज्ञा कहां है वह तुम्हारे तेज से बचने के लिए आई थी विश्वकर्मा ने बताया। अब वह कहां है मैंने ध्यान करके पता किया कि उसने घोड़े का रूप ले लिया है वह जंगल में घूमती रहती है और तुम्हारे तेज को घटाने के लिए तपस्या कर रहे है, विश्वकर्मा ने बताया

तो आप मेरा तेज घटा दीजिए फिर उसे खोजने के लिए चलते हैं सूर्य देव बोले। विश्वकर्मा ने सूर्य देव के तेज का आठवां भाग छांट दिया जिससे उनका तेज घाट गया फिर वे संज्ञा को खोजने निकले। उन्होंने राहगीरों से पूछा कि तुमने इधर कोई घोड़ी देखी है। हां एक विलक्षण घोड़ी को हमने नदी के पास विचरण करते देखा है राहगीरों ने बताया। उनमें विलक्षण क्या था, वह घोड़ी मानवीय भाषा में बोलती है, देव।

तब तो वह अवश्य ही संज्ञा होगी। सूर्य बोले ! सूर्य घोड़ी के निकट पहुंचे और कहा — संज्ञा में सूर्य हूँ तुम्हारा पति। अब यह घोड़ी का रूप त्याग दो। “जब तक मेरी मनोकामना पूरी ना होगी मैं यह रुप नहीं त्यागूंगी। घोड़ी संज्ञा ने उत्तर दिया।

तुम्हारी मनोकामना तो पूरी भी हो गई। “सूर्य ने कहा” सूर्य देव ठीक कहते हैं, बेटी !” विश्वकर्मा बोले ___ मैंने इनके तेज का आठवां भाग काट दिया है।

पिता से आश्वासन पाकर संज्ञा ने अपना घोड़ीवाला रूप त्याग दिया और अपने स्वाभाविक रूप में आ गई, वह हर्ष और विभोर होकर अपने पिता से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी।

फिर उसने झुककर सूर्य देव के पांव छुए और पूछा — स्वामी हमारे बच्चे तो सकुशल है ना ?

हां बच्चे ठीक हैं और अब फिर उन्हें उनकी मां मिल जाएगी। —-सूर्यदेव ने मुस्कुरा कर कहा।

मैं अब कभी भी अपना घर त्याग कर नहीं नहीं जाऊंगी।” संज्ञा बोली ___ आप छाया को क्षमा कर देना और अपने साथ ही रखना।

दोनों का मिलन देकर विश्वकर्मा ने भी अपना आशीर्वाद प्रदान किया ___ “जाओ और सदा सुख शांति से रहो”

उसके बाद सूर्य लोग में सूर्य देव छाया और संज्ञा के बच्चों के साथ सुख पूर्वक रहने लगे।

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