Brahmand ki utpatti kaise hui ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई और ब्रह्मांड की उत्पत्ति कब हुई क्या वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति देवतों ने की है यह ऐसे सवाल है जिनके बारे में बिल्कुल सटीक कह पाना मुश्किल है।
लेकिन बीते काल खंड में कई वैज्ञानिक हुए जिन्होंने इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत के बारे में बताया है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई इस बारे में धर्म ग्रन्थों वेदों में एक अलग व्याख्या मिलती है वहीं वर्तमान युग के वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति कि एक अलग ही रूप रेखा खीचते है।
यहाँ हम आपको वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई और वर्तमान युग के वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांतों के बारे में क्या कहते है की जानकरी आप तक पहुंचाएंगें।
तो यदि आप भी जानना चाहते है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई और ब्रह्मांड की उत्पत्ति कब हुई तथा वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति का व्याख्यान तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई
ब्रम्हांड की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत प्रचलित है जिसमे बिग बैंग सिद्धांत सर्वाधिक प्रचलित है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन जार्ज लैमेंटेयर ने किया एवं बाद में राबर्ट वेगनर ने 1967 में इस सिद्धांत की व्याख्या प्रस्तुत की।
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बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व भरी पदार्थों से निर्मित एक गोला कार सूक्ष्म पिंड था। किसका आयतन अत्यधिक सूक्ष्म और ताप वा घनत्व अनंत था।
बिग बैंग की प्रक्रिया में इसके अंदर महाविस्पोट हुआ और ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई आपको बता दें जब से इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है तब से यह लगातार फैलता ही जा रहा है।
(आपको बता दें कि, इसी गोला कार सूक्ष्म पिंड को हमारे वैदिक काल में वेदों में हिरणगर्भ कहा गया है। इसी हिरण्यगर्भ के अंदर से यह समूचा ब्रह्मांड जन्मा है।)
इस ब्रह्मांड में कई आकाश गंगा और उन आकाश गंगा में कई तारे और ग्रहों का निर्माण और विनाश हो रहा है। यह प्रक्रिया लगातार चल रही है।
इस पूरे ब्रह्मांड को नापा नहीं जा सकता है किसी को नहीं पता यह कितना बड़ा है और इसकी सीमा क्या है। इस बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति कब हुई?
brahmand ki utpatti kaise hui बिग बैंग (महा विस्फोट) यह शब्द उस समय की ओर संकेत करता है जब शून्य ब्रह्मांड का विस्तार प्रारंभ हुआ था। यह समय गणना करने पर आज से 13.7 खरब वर्ष पूर्व पाया गया है। यानी ब्रह्मांड की उत्पत्ति आज से 13.7 खरब वर्ष पूर्व हुई।
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ब्रह्मांड क्या है?
ब्रम्हांड की परिकल्पना कुछ इस प्रकार की गई है, अस्तित्वयमान द्रव एवं ऊर्जा के सम्लित रूप को ब्रम्हांड कहते हैं। दूसरे शब्दों में सूक्षतम अणुँओं से लेकर महाकाय आकाशगंगाओं तक के सम्मलित स्वरूप को ब्रम्हांड कहा जाता है।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत
2. साम्यावस्था या सतत सृस्टि सिद्धांत या स्थिर अवस्था संकल्पना - थामस गोल्ड एवं हरमन बॉडी।
3. दोलन सिद्धांत - डा एलान संडेजा।
4. स्फीति सिद्धांत - अलेंन गूथ।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी बिग बैंग सिद्धांत की व्याख्या
ब्रम्हांड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में महाविस्फोटक सिद्धांत सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है। इसका प्रतिपादन बेल्जियम के खगोलज्ञ एवं पादरी एब जार्ज लेमेंटेयर ने किया था। महा विस्फोट का सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में सबसे ज्यादा मान्य है।
यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि कैसे आज से लगभग 13.7 खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी।
ये तो अभी हमने जाना की वर्तमान युग के वैज्ञानिक ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में क्या व्याख्या करते है। अब हम आपको वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में जानकारी देने जा रहे है। तो इसे आगे तक जरूर पढ़ें और अपने दोस्तों व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पर भी शेयर जरुर करें।
वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति
वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई (vedo ke anusar brahmand ki utpatti kaise hui) के बारे में हम आगे बात करते है। क्या आप जानते है भारतीय वैदिक ब्रह्माण्ड विज्ञान सबसे प्रचलित और प्राचीन है।
vedo ke anusar brahmand ki utpatti kaise hui |
हमारे वेदों में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की बहुत स्पष्ट और सटीक व्याख्या की गयी है आपको बता दें की हमारा भारतीय वैदिक ब्रह्माण्डीय विज्ञान ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास और सम्भावित परिणाम या अंत का स्पष्टीकरण देता है। तो चलिए, जानते हैं कि वेदों के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई।
भारतीय वैदिक साहित्य में कई ब्रह्माण्ड विज्ञान की कल्पनाएँ शामिल हैं जिसमें से एक नासदीय सूक्त ऋग्वेद के 10वें मंडल का 129वां सूक्त है।
इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्डीय विज्ञान और ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीकता से बताता है। इसी कारण यह ऋग्वेद का सूक्त दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ है।
नारदीय सूक्त में कहा गया है कि, इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले किसी का आस्तित्व ही नहीं था। इस ब्रह्मांड की शुरुआत शून्य से हुई। उस समय बस एक अनादि पदार्थ था, जिसका मतलब आदि या आरंभ न हो और जो सदा से बना चला आ रहा हो।
हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, कई ब्रह्मांड हैं, और प्रत्येक ब्रह्माण्ड 4.32 बिलियन वर्षों तक अस्तित्व में रहता है। इसे कल्प या ब्रह्मा का दिन कहा जाता है। समय को आगे मन्वन्तर में विभाजित किया है।
पुराणिक हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, 14 मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र तथा वैदिक समयरेखा के नौसार है।
प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।
जब ब्रह्मा अपने रचनात्मक कर्तव्यों से आराम लेते हैं और ब्रह्मांड एक अव्यक्त अवस्था में रहता है। इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टि रचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फिर संहारकर्ता (भगवान शिव) इसका संहार करते हैं और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में चलता रहता है।
प्रत्येक कल्प को खरबों वर्षों वाले चार युगों में विभाजित किया गया है, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग, और वर्तमान काल कलियुग है। इसके आलावा हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में ब्रह्मांड की संरचना को 3 लोकों से लेकर 12 लोकों (संसार) तक बांटा गया है।
तो ये था वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में संछिप्त जानकारी। वैसे तो वेदों में काफी गूढ़ रहस्य छुपे हुए है लेकिन उनको समझ पाना आम लोगों के बस का नहीं है। इस पोस्ट में बस इतना ही आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा हमे जरूर बताएं और इससे अपने दोस्तों के साथ व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पर भी शेयर जरुर करें।
आपने हमने इतना समय दिया आपका बहुत धन्येवाद।