अजामिल का उद्धार | ajamil ka uddhar katha in hindi

ajamil ka uddhar

कुसंगति संस्कारों का नाश कर डालती है , ऐसा ही एक कुलीन ब्राह्मण कुल में जन्मे अजामिल के साथ हुआ । अजामिल ने शास्त्रों का अध्ययन किया था । वो मन , कर्म और वचन से किसी प्रकार का पाप कर्म नहीं करता था । पवित्र आत्मा होने के कारण उसमें दिव्य गुण सहज ही विद्यमान थे ।

अजामिल रोज अपने पिता द्वारा किए जाने वाले यज्ञ के लिए वन से फूल , फल , समिधा इत्यादि लेकर आता था । एक दिन जब अजामिल वन से समिधा लेकर लौट रहा था तो उसकी नजर एक गणिका पर पड़ी जो एक युवक को रिझा रही थी ।

अजामिल का मन उस सुंदर गणिका पर मोहित हो गया । उसका विवेक भ्रष्ट हो गया । उस गणिका ने उसकी रातों की नींद छीन ली । अब तो उस गणिका की प्रसन्नता ही अजामिल की प्रसन्नता थी उसकी प्रसन्नता के लिए वह अपने घर की सम्पत्ति लुटाने लगा ।

उस कुलटा की कुचेष्टाओं से प्रभावित होकर वह अपनी विवाहिता पत्नी को भी भूल गया और उसका परित्याग करके वह उस गणिका के साथ रहने लगा।

कुसंग के प्रभाव से अब अजामिल का कार्य न्याय – अन्याय किस भी प्रकार से धन अर्जित करके गणिका के कुटुम्ब का पालन – पोषण हो गया । दूसरे प्राणियों को लूटकर धन लाने में भी उसे कोई संकोच नहीं होता था । कुलटा का संसर्ग करने से अजामिल की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी ।

 

ajamil ka uddhar

धीरे – धीरे पाप कमाते – कमाते वह बूढ़ा हो गया । उस गणिका से उसकी दस संतानें हुई । उसने अपने सबसे छोटे पुत्र का नाम ‘ नारायण ‘ रखा । वृद्ध अजामिल उससे विशेष प्यार करता था । उसका अधिक समय अब उस बच्चे के लाड़ प्यार में ही व्यतीत होता था ।

आखिर मृत्यु किसी को नहीं छोड़ती है । अजामिल की मृत्यु का समय भी आ गया । हाथों में पाश लिए यमदूत उसे लेने पहुंचे । उन भयंकर यमदूतों से भयभीत होकर अजामिल ने उच्च स्वर में नारायण ! नारायण !! पुकारा । ‘ नारायण ‘ नाम का उच्चारण सुनते ही भगवान विष्णु के पार्षद तत्काल अजामिल के पास पहुंच गए ।

उन्होंने बलपूर्वक अजामिल को यमदूतों के पाश से मुक्त करा दिया । यमदूतों के कारण पूछने पर विष्णु के पार्षदों ने उत्तर दिया- ” जिस समय इसने ‘ नारायण ‘ – इन चार अक्षरों का उच्चारण किया , उसी से इसके समस्त पापों का प्रायश्चित हो गया ।

यमदूतो ! जैसे जाने या अनजाने में ही ईंधन और अग्नि का स्पर्श हो जाए तो वह भस्म हो ही जाता है , वैसे ही जान – बूझकर या अनजाने में भगवान के नामों का संकीर्तन करने से मनुष्य के सारे पाप भस्म हो जाते हैं । भगवन्नाम भगवत्कृपा प्राप्ति का अमोघ साधन है । “

धर्मात्मा से पापी बना अजामिल अपने अंतकाल में नारायण का नाम लेने मात्र से पाप मुक्त हो गया और विष्णुलोक का अधिकारी बना । कहते हैं अंतकाल में मृत्यु के भय से प्राणी की जुबान पर परमात्मा का नाम आता ही नहीं और अंतकाल में जिसको परमात्मा का स्मरण हो जाए उसके समस्त पाप तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं । ऐसा ही अजामिल के साथ हुआ सम्भवतः ये उसके पिछले किए गए किसी सतकर्म का ही परिणाम था ।

यह भी पढ़ें ..