आलस्य मनुष्य का शत्रु है यह तो जग जाहिर है, आलसी मनुष्य खुद के लिए तो अच्छा नहीं होता बल्कि वह सारे समाज के लिए भी खराब होता है। आलस्य एक दुर्गुण इसलिए संस्कृत में कहा गया है आलस्यम् मनुष्याणां शरीरस्थः महान् शत्रुः अस्ति। तथा च उद्यमसमः बन्धुः न अस्ति यं कृत्वा मनुष्यः न अवसीदति। जिसका अर्थ है कि आलस मनुष्य का सबसे बडा दुश्मन है। और मेहनत जैसा कोई बन्धु नहीं है, मेहनत कर के मनुष्य कभी भी दुखी नहीं होता है।
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है
आपको एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि केवल एक चीज है तो खराब किस्मत पर काबू पाती है और वह है कठोर परिश्रम। सक्रियता मानव जीवन के विकास की आधारशिला है। किसी कवि ने कहा है।
‘गति का नाम अमर जीवन है,
निष्क्रियता ही घोर मरण है।’

आलस्य एक दुर्गुण- आलस्य मनुष्य का सबसे हानिकारक दुर्गुण है। हमें अपने जीवन का एक क्षण भी निकम्मा रहकर नहीं गँवाना चाहिए। समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, वह तो गतिमान है जो आलस्य करेगा वह जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ जायेगा।
सक्रियता उन्नति का आधार- सक्रियता से मनुष्य अपनी उन्नति के साथ-साथ देश, समाज का भी कल्याण करता है। इतिहास बताता है कि सक्रिय लोगों ने असम्भव को सम्भव बनाया है। संघर्षशील जीवन की प्रेरणा देते हुए तारा पांडेय लिखती हैं-
‘संघर्षों से क्लान्त न होना, यही आज जन-जन की वाणी।
भारत का उत्थान करो तुम, शिव सुन्दर बन कल्याणी॥’
श्रम की महिमा- महान ग्रन्थ गीता में कर्म को सर्वोपरि माना गया है। कहा गया है ‘उद्यमेन सिद्धयन्ति कार्याणि न च मनोरथै।’ ईश्वर ने हमें दो हाथ और दो पैर परिश्रम के लिए ही दिए हैं। महान विचारक चाणक्य मानते थे कि “कितने ही कठिन माध्यम हों, मैं साध्य तक पहुँच जाऊँगा।” इस श्रम साधना के द्वारा उन्होंने ऐतिहासिक सफलताएँ प्राप्त की थीं। श्रम का फल मीठा होता है। हमारे देश के निर्माता किसान और मजदूर श्रम के बल पर सफलता की ओर अग्रसर होते हैं
‘परिश्रम करता हूँ अविराम, बनाता हूँ क्यारी औ कुंज।
सींचता दृग जल से सानन्द, खिलेगा कभी मल्लिका पुंज॥’
आलस्य पतन का कारण- आलस्य मनुष्य को पतन की ओर ले जाने वाला है। आलसियों में कायरता भर जाती है। वे कुछ करना नहीं चाहते हैं। उनका जीवन निरन्तर गिरता चला जाता है। फिर वे ईश्वर को पुकारते हैं
‘कायर मन कहुँ एक अधारा। दैव-दैव आलसी पुकारा।’
श्रम स्वावलम्बन के विकास का मूल- परिश्रमी व्यक्ति में स्वावलम्बन की भावना निरन्तर विकसित होती जाती है। उसमें स्वाभिमान का भाव आता जाता है। परिश्रमी व्यक्ति प्रसन्न रहता है और दूसरों को प्रेम करता है। उसमें द्वेष, ईर्ष्या, कटुता आदि दुर्गुण नहीं होते हैं। दिनकर जी लिखते हैं-
‘श्रम होता सबसे अमूल्य धन, सब जन खूब कमाते।
सब अशंक रहते अभाव से, सब इच्छित सुख पाते॥’
उपसंहार- इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्रम और सक्रियता जीवन को श्रेष्ठ बनाने का आधार है और आलस्य निरन्तर पतन की ओर ले जाने वाला है। आलस्य से मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है, इसीलिए आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
- समय का महत्व
- परिश्रम का महत्त्व
- आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु
- निबंध क्या है और निबंध कैसे लिखें ?
- पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
- बसंत ऋतु पर निबंध
हमारे फेसबुक पेज से जुड़ें – click