बिहारीलाल का जीवन परिचय कक्षा 10, रचनाएँ, भाषा-शैली और साहित्य में स्थान

बिहारी लाल का जीवन परिचय:– नमस्कार दोस्तों, इस पोस्ट में हम आपको Bihari lal biography in hindi के बारे में जानकरी देने जा रहे है। इसके अलावा usefulgyan के इस पोस्ट में हम आपको kavi bihari lal की रचनाएँ, भावपक्ष एवं कलापक्ष, भाषा और bihari lal का साहित्य में स्थान के बारे में जानकारी देने जा रहे है। तो चलिए बिहारीलाल का जीवन परिचय के बारे में संछिप्त में जानते है। 

बिहारीलाल का जीवन परिचय कक्षा 10

महाकवि बिहारी लाल एक रस शिद्ध कवि हैं। रीतिकाल कवियों में बिहारी लाल का प्रमुख स्थान है। बिहारी लाल का जन्म सन् 1595 ई. में ग्वालियर के निकट बसुआ गोविन्दपुर नामक ग्राम में हुआ था। आप चतुर्वेदी ब्राह्मण थे, बिहारी लाल रीतिकालीन वैभव के अमर गायक हैं।

बिहारीलाल का जीवन परिचय
बिहारीलाल का जीवन परिचय

नीति, शृंगार एवं भक्ति का बिहारी लाल के काव्य में अपूर्व समन्वय है। सन् 1663 में इनकी मृत्यु स्वीकारी गई है। इनकी ससुराल मथुरा में थी। इन्होंने अपनी युवावस्था ससुराल में ही बिताई। बाद में आप जयपुर के राजा के दरबार में चले गये।

वहाँ का राजा जयसिंह अपनी छोटी रानी के प्रेम में आकण्ठ निमग्न था। बिहारी ने एक दोहा लिखकर अन्त: जयपुर राज दरबार में भेजा। उस दोहे को पढ़कर राजा की आँखें खुलीं। यहीं से बिहारी का मान बढ़ गया। जयपुर में ही बिहारी लाल ने अपनी एकमात्र रचना ‘बिहारी सतसई’ की रचना की।

बिहारीलाल की रचनाएं

‘बिहारी सतसई’। बिहारी ने केवल एक काव्यग्रन्थ की रचना की जो ‘बिहारी सतसई’ नाम से विख्यात हुई। इसमें 719 दोहे संगृहीत हैं। काव्यगत विशेषताएँ

बिहारी लाल की भाषा शैली

भक्ति भावना:- बिहारी राधा तथा कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। अपने ग्रन्थ ‘सतसई’ के मंगलाचरण में इसी युगल रूप की प्रार्थना की है।

सौन्दर्य चित्रण:- बिहारी सौन्दर्य के कुशल चितेरे हैं। काव्य में बाह्य एवं आन्तरिक सौन्दर्य को भव्य तथा मनोरम रूप में अंकित किया गया है।

प्रकृति चित्रण बिहारी ने प्रकृति की छटा को निकट से निहारा है। प्रकृति को कवि ने स्वतन्त्र सत्ता के रूप में स्वीकारा है। कवि का बसन्त एवं ग्रीष्मकालीन प्रकृति वर्णन सजीव तथा मनमोहक है।

नीति-काव्य:– बिहारी ने नीति विषयक दोहों की भी रचना की है। ये दोहे मानव को प्रकाश तथा ज्ञान प्रदान करने वाले हैं।

श्रृंगार रस का परिचय:–बिहारी प्रमुख रूप से श्रृंगार रस के चितेरे हैं। काव्य में शृंगार रस का सांगोपाग वर्णन है। संयोग-श्रृंगार के साथ ही विप्रलम्भ श्रृंगार का भी मार्मिक तथा प्रभावोत्पादक चित्रण है। श्रृंगार के अतिरिक्त शान्ति एवं हास्य रस का प्रवाह भी देखा जा सकता है, परन्तु कवि का मन शृंगार में ही रमा है।

बिहारीलाल की भाषा 

भाषा:- बिहारी के काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा परिमार्जित तथा व्याकरण सम्मत है। विषय के अनुरूप भाषा का परिवर्तित रूप देखा जा सकता है। उनकी भाषा में खड़ी बोली, संस्कृत, बुन्देली, अरबी-फारसी तथा अवधी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगोचर होता है।

अलंकार योजना:-अलंकारों के प्रयोग के सम्बन्ध में बिहारी बहुत ही कुशल तथा सक्षम हैं। हर दोहे में कोई न कोई अलंकार आवश्यक रूप से प्रयुक्त है। श्लेष, यमक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति, विरोधाभास, उपमा तथा रूपक अलंकारों का प्रसंगानुकूल बहुत ही सफल एवं सराहनीय प्रयोग अवलोकनीय है।

छन्द योजना:-बिहारी का प्रिय छन्द ‘दोहा’ है। इन दो पंक्तियों के छन्द में कवि ने भावों का अथाह सागर लहरा दिया है। यत्र-तत्र सोरठा छन्द का भी प्रयोग है।

साहित्य में स्थान:-बिहारी एक उच्चकोटि के रचनाकार थे। वे बहुज्ञ एवं प्रतिभा सम्पन्न थे। उन्होंने गागर में सागर भर दिया है। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनकी उक्ति-वैचित्र्य को देखकर विद्वान दंग रह जाते थे। उनके काव्य में लोक-ज्ञान की छाप विद्यमान है। भाषा में ध्वन्यात्मकता है। उनकी अनुभूति गहन है। अभिव्यक्ति बेजोड़ है।

FAQ,s

Bihari lal biography in hindi FAQ

Q. – बिहारी लाल किस राजा के दरबारी कवि थे?
Ans:- बिहारी लाल जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे।

Q. – बिहारी लाल की शैली कैसी थी?
Ans:- मुक्तक शैली और समास शैली’

Q. – बिहारी लाल की भाषा कैसी थी?
Ans:- बिहारी के काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा परिमार्जित तथा व्याकरण सम्मत है। विषय के अनुरूप भाषा का परिवर्तित रूप देखा जा सकता है। उनकी भाषा में खड़ी बोली, संस्कृत, बुन्देली, अरबी-फारसी तथा अवधी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगोचर होता है।

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