biography of hazari prasad dwivedi in hindi:– आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जाने-माने श्रेष्ठ समालोचक, निबन्धकार, उपन्यासकार, निष्ठावान तथा आदर्श अध्यापक थे। डॉ. शम्भूनाथ सिंह के कथनानुसार, “आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य को बड़ी देन हैं। उन्होंने हिन्दी समीक्षा की एक नई उदार और वैज्ञानिक दृष्टि दी है।”
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Biography of hazari prasad dwivedi in hindi
hazari prasad dwivedi जीवन परिचय- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में बलिया जिले के अन्तर्गत दुबे के छपरा नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योति कली देवी था।
पिता की प्रेरणा एवं दिशा-निर्देशन के फलस्वरूप संस्कृत एवं ज्योतिष का गहन अध्ययन किया। शान्ति-निकेतन काशी विश्वविद्यालय एवं पंजाब विश्वविद्यालय जैसी विख्यात संस्थाओं में हिन्दी के विभागाध्यक्ष के पद पर प्रतिष्ठित रहे। शान्ति-निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर और आचार्य क्षितिज मोहन के सम्पर्क के कारण साहित्य साधना में प्राण-पण से जुट गये।

लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट. की उपाधि से आपको विभूषित किया गया। सन् 1957 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया। 19 मई,सन् 1979 ई.को हिन्दी का . यह महान साहित्यकार सदा-सदा के लिए मृत्यु के रथ पर सवार हो गया।
हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ
रचनाएँ-आचार्य द्विवेदी जी ने साहित्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। उनकी रचनाएँ निम्न हैं
आलोचना—सूर साहित्य’, ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘कबीर’, ‘सूरदास और उनका काव्य’, ‘हमारी साहित्यिक समस्याएँ’, साहित्य का साथी’, ‘साहित्य का धर्म’, ‘नख दर्पण में हिन्दी कविता’, ‘हिन्दी साहित्य’, समीक्षा साहित्य’।
उपन्यास–’चारुचन्द्र लेख’, ‘अनामदास का पोथा’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ तथा ‘पुनर्नवा’।
सम्पादन- सन्देश रासक संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो।
अनूदित रचनाएँ- प्रबन्ध कोष,प्रबन्ध-चिन्तामणि, विश्व परिचय आदि।
हजारी प्रसाद द्विवेदी भाषा शैली
भाषा- द्विवेदी जी की भाषा-शैली की अपनी विशेषता है। आपने अपनी रचनाओं में प्रसंगानुकूल उपयुक्त तथा सटीक भाषा का प्रयोग किया है।
भाषा के अन्तर्गत सरल, तद्भव प्रधान तथा उर्दू संस्कृत शब्दों का प्रयोग किया है। वे अपनी बात को स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त करने में सक्षम थे। बोल-चाल की भाषा सरल तथा स्पष्ट है। इसी भाषा को द्विवेदी जी ने अपनी कृतियों में वरीयता प्रदान की है।
भाषा में गति तथा प्रवाह विद्यमान है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सुधार आ गया है। संस्कृत के शब्दों के प्रयोग से भाषा जटिल और दुरूह हो गयी है। भाषा की चित्रोपमता तथा अलंकारिता के कारण हृदयस्पर्शी और मनोरम बन गई है।
शैली
गवेषणात्मक शैली- शोध तथा पुरातत्त्व से सम्बन्धित निबन्धों में इस शैली का प्रयोग है।
आत्मपरक शैली- इस शैली का प्रयोग द्विवेदी जी ने प्रसंग के साथ-साथ स्वयं को समाहित करने के लिए किया है।
सूत्रात्मक शैली– बौद्धिकता के कारण अनेक स्थान पर सूत्रात्मक शैली का प्रयोग किया है।
विचारात्मक शैली- अधिकांश निबन्धों में इस शैली का प्रयोग है।
वर्णनात्मक शैली- द्विवेदी जी की वर्णनात्मक शैली इतनी स्पष्ट, सरस तथा सरल है कि वह वर्णित विशेष स्थलों का मानव पटल के समक्ष चित्र सा उपस्थित कर देती है।
व्यंग्यात्मक शैली- इस शैली के अन्तर्गत द्विवेदी जी ने कोरे व्यंग्य किये हैं।
भावात्मक शैली- द्विवेदीजी जहाँ भावावेश में आते हैं वहाँ उनकी इस शैली की सरसता दर्शनीय है।
उपलब्धियाँ तथा पुरस्कार :
प्रमुख रूप से आलोचक, इतिहासकार और निबंधकार के रूप में प्रख्यात द्विवेजी जी की कवि हृदयता यूं तो उनके उपन्यास, निबंध और आलोचना के साथ-साथ इतिहास में भी देखी जा सकती है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि उन्होंने बड़ी मात्रा में कविताएँ लिखी हैं। हज़ारी प्रसाद द्विवेदी को भारत सरकार ने उनकी विद्वत्ता और साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखते हुए साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में 1957 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था।
साहित्य में स्थान- द्विवेदीयुगीन साहित्यकारों में हजारीप्रसाद द्विवेदी का शीर्ष स्थान है। ललित निबन्ध के सूत्रधार एवं प्रणेता हैं। निबन्धकार,उपन्यासकार, आलोचक के रूप में आपका योगदान अविस्मरणीय हैं। आपने अपनी पारस प्रतिभा से साहित्य के जिस क्षेत्र को भी स्पर्श किया उसे कंचन बना दिया।