hindi kahani chamatkari yaksha, अयोध्या नगरी में एक चमत्कारी यक्ष मंदिर था। वहां हर वर्ष बड़ा मेला लगता था, वहाँ की परंपरा के अनुसार हर वर्ष चित्रकारों द्वारा उस यक्ष का चित्र बनाया जाता था। लेकिन उत्सव समाप्त होते ही वह यक्ष चित्रकार को मार डालता था। इसका यह परिणाम हुआ की चित्रकार नगरी छोड़ छोड़कर भागने लगे।
राजा को यह मालूम हुआ तो उसने सोचा कि इस तरह से सब चित्रकार भाग जाएंगें, तो फिर यक्ष को कौन चित्रित करेगा?
राजा ने एक नियम बना दिया की सभी चित्रकारों के नाम पत्तों में लिख कर एक घड़े में डाल दिए जाते। एक एक नाम निकला जाता। जिसका नाम निकलता उसे यक्ष को चित्रित करना पड़ता।
एक बार कौशाम्बी का एक चित्रकार अयोध्या आया और एक चित्रकार के घर रहने लगा। यह चित्रकार अपनी वृद्ध माँ का इकलौता बेटा था। संयोगवश इस वर्ष इस चित्रकार की बरी आई। वृद्धा को जब पता चला तो वह बहुत दुखी हुई।
कौशाम्बी के चित्रकार ने कहा ___ “माँ तुम रोती क्योँ हो? यक्ष को चित्रित करने मै जाऊंगा।”
नवयुवक चित्रकार ने 2 दिन का उपवास किया, नए – नए वस्त्र पहने, नए कलशों के जल से स्नान किया, नई तुलिकाएँ लीं, नए रंग और पात्र लिए और यक्ष को चित्रित करने चल दिया। चित्रकार में यक्ष को इतने भक्तिपूर्ण भाव से, अपनी पूर्ण छमताओं का उपयोग करके चित्रित किया कि यक्ष का रूप पूरी तरह निखार कर सामने आ गया।
यक्ष ने प्रकट होकर चित्रकार के हुनर की प्रशंसा की और कहा __ आज तक जिसने भी मेरा चित्र बनाया उसने मृत्यु के भय से उसे विक्रित कर दिया, इसलिए में आज तक अपना चित्र बनाने वाले प्रत्येक चित्रकारका वध करता आ रहा हूँ। तुम पहले चित्रकार हो जिसने मृत्यु का भय त्याग कर अपनी उत्कृस्ट कला का प्रदर्शन किया है, तुमसे प्रशन्न होकर मै तुम्हें मुँह माँगा वर देने को तैयार हूँ।” यक्ष ने वर मांगने को कहा।
चित्रकार हाँथ जोड़कर बोला __ ‘देव यदि आप मुझपर प्रशन्न ही है तो आप चित्रकारों का वध करना बंद कर दें।” यक्ष ने तथास्तु कहा और उसे वरदान दिया की वह किसी का भी केवल एक अंग देख कर उसका पूरा चित्र बना देगा। चित्रकार में आगे चलकर अपनी चित्रकला और यक्ष से मिले के वरदान का ऐसा उपयोग किया कि उसे मन प्रतिष्ठा के साथ – साथ अपार धन भी प्राप्त हुआ।
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