हिंदी कहानी मुझसे बड़ा भक्त कौन? | hindi kahani mujse bada bhakt kon

हिंदी कहानी मुझसे बड़ा भक्त कौन? | hindi kahani mujse bada bhakt kon

एक समय की बात है स्वर्ग में विचरण करते समय श्री नारद जी ने मृत्यु लोक की तरफ देखा। वहाँ उन्हें कई नर नारी प्रभु की उपासना और भक्ति करते दिखे ऐसे में हरपाल नारायण – नारायण का जप करने वाले श्री नारद के मन में ख्याल आया की प्रभु श्री हरि का मै हर दम भजन करता रहता हूँ भला मुझसे बड़ा प्रभु नारायण का भक्त कौन होगा। यही बात पक्की करने के लिए नारद मुनि प्रभु श्री हरी नारायण के पास पहुंचे और प्रभु को नमस्कार किया।  

प्रभु श्री हरी नारायण नारद जी के मन कि बात समझ चुके थे की नारद जी में भक्ति का घमण्ड उत्पन हो गया है। इस लिए जानकर वे बोले हे नारद यहाँ आने का कारण बाएं। 

नारद जी बोले हे भगवन मुझे यह जानना है कि क्या आपका मुझसे भी बड़ा भक्त कोई है या नहीं।”

विष्णु जी तो पहले ही समझ गए थे की मामला क्या है लेकिन अपने मन की बात छुपकर बोले ___ “हे नारद। इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमें धरती में जाना होगा। 

“मैं तैयार हूँ भगवन ऐसा नारद जी बोले।” ___ “फिर दोनों धरती की ओर चल पड़े। 

धरती पर पहुँचा कर दोनों ने साधारण मनुष्य का रूप धरा और एक गांव के किनारे बने एक छोटे से घर की ओर जाने लगे। उस घर के पास पहुंच कर भगवान बोले __ “नारद। मेरा सबसे  भक्त यहाँ रहता है।  

मुझे यकीन नहीं होता भगवन कि आपका सबसे बड़ा भक्त यहाँ रहता है। क्या वो मेरी तरह हर घड़ी आपके ध्यान में लगा रहता है। ”  नारद जी ने ऐसा कहा। 

भगवान विष्णु ने कहा आओ खुद ही देख लो। और उस घर के पास जाने लगे। किसान उस समय अपने पशुओं को बांध रहा था। और हरि नाम का जप कर रहा था। श्री विष्णु ने किसान के पास जाकर नारायण – नारायण कहा। 

नारायण नाम सुनते ही किसान ने दोनों से पुछा ___ “आप कौन है और कहाँ से आए है। मेरे लिए कोई सेवा हो तो निःसंकोच कहें। 

“हम यात्री है और नगर की ओर जा रहे है, लेकिन अब अँधेरा होने को है और रास्ता लम्बा और रात में खतरों भरा है। इस लिए रात भर का आश्रय चाहते है। ऐसा भगवान विष्णु ने कहा। “

मेरे घर में आपका स्वागत है  जो भी रूखा – सूखा है आपके लिए प्रस्तुत है। भगवान ने मुझे आप लोगों की सेवा का अवसर दिया बड़ी कृपा हुई उनकी। “किसान ने प्रसन्न भाव से कहा। “

दोनों को बाहर खटिया पर बिठा कर किसान अंदर गया और अपनी पत्नी से कहा ____ “देवी ! दो अतिथि आ गए है। “

किसान कि पत्नी उस समय बच्चों को भोजन परोसने ही वाली थी। धीरे से आटे का बर्तन दिखाती हुई बोली ____घर पर इतना सा ही आटा है। और बच्चे भोजन मांग रहे है।”

कोई बात नहीं हम अतिथियों को भरपेट भोजन कराएंगें। “किसान बोला ___ तुम बच्चों को आज कांजी बना कर पिला दो। “

नारद और विष्णु जी ने दोनों की सारी बात सुनी लेकिन परकछा लेने के लिए दोनों भोजन करने बैठ गए। दोनों भरपेट भोजन कर चुके तो नारद सोचने लगे ____”यह सीधा साधा गृहस्थ जीवन जीने वाला भगवान का सबसे बड़ा भक्त कैसे हो सकता है? ‘ 

उधर श्री हरि ने किसान से और भोजन लाने की मांग की।  बोले ___ “मेरा पेट अभी भरा नहीं है क्या मुझे और भोजन मिलेगा ?”

यह सुनकर किसान रसोई घर में गया और अपनी पत्नी से पुछा ___ कुछ और भोजन बचा है क्या ?”

“बच्चों के लिए कांजी बनाई है बस वही है। .__”पत्नी बोली। 

भगवान विष्णु वह पूरी कांजी भी पी गए। और किसान के परिवार को भूखा ही होना पड़ा। भूखे बच्चे माँ का आँचल थाम कर बोल ही उठे ____ “माँ नींद नहीं आ रही है। मुझे बड़े जोर की भूख लगी है, पिता जी ने उन अतिथियों को सारी कांजी क्यों पीला दी ?” 

“अतिथि को भोजन कराना स्वम भगवान विष्णु को भोजन करना है बेटा !” पिता ने बच्चों के सर पे हाँथ फेरते हुए कहा। 

बाहर दोनों अतिथि अपने अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे। भगवान विष्णु ने कहा ____ “तुमने सुना नारद ! किसान के परिवार को भोजन नहीं मिला फिर भी वह मेरे गुण गा रहे है। “

“यह तो कुछ भी नहीं मेने तो कई – कई दिन भूखे रहकर आपका स्मरण किया है प्रभु। __”नारद जी ने कहा। 

अहले दिन सुबह उन्होंने देखा। किसान भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने कह रहा है ___”गोविन्द हरि – हरि। आप सदा मेरे मन में बसे रहो और मुझे कुछ नहीं चाहिए। ” फिर वो दोनों अतिथियों से बोला ___ “हरि की बड़ी कृपा है की कल रात आपको कोई तकलीफ नहीं हुई ? आपको जब तक यहाँ रुकना है तब तक रुकें मैं अब खेत जा रहा हूँ। ” 

“हम भी तुम्हारे साथ चलेंगें ,यदि तुम्हें आपत्ति न हो तो। ” श्री हरि बोले। नारद जी और भगवान विष्णु किसान के साथ चल दिए। खेत आने पर किसान बोला ___”यही है अपना खेत। अब मैं अपना काम करता हूँ। गोविन्द हरि – हरि। “

“तुम तो सत्पुरुष हो। भगवान विष्णु  के बड़े भक्त हो , हर घडी उनका नाम लेते रहते हो। “नारद बोले। 

“अरे कहाँ। काम से जब भी थोड़ा समय मिलता है ,तभी उनका नाम लेता हूँ। ” किसान बोला। “कब – कब मिलता होगा समय ?” नारद ने पुछा। 

“सुबह उठता हूँ तब , रात में सोता हूँ तब और दिन में जब भी काम से समय मिल जाए तब। ” किसान बोला। 

दोनों किसान से विदा लेके चले तो नारद ने व्यंग के स्वर में कहा ___ “आपने सुना भगवन। वह सुबह शाम दो चार बार आपका स्मरण करता है। जबकि मैं हर समय आपका ध्यान करता हूं। फिर भी आप उसे महान भक्त बताते है। “

भगवान विष्णु चुप रहे, किन्तु मन ही मन उन्होंने कहा ____ जल्द कारण भी जान जाओगे नारद। “

कुछ दूर चलने पर भगवान विष्णु ने एक पात्र को तेल से लबालब भरकर नारद को देते हुए कहा। __नारद ! इसे अपने सर पर रखकर बिना हाथ लगए सामने वाली पहाड़ी तक ले चलो। लेकिन ध्यान रहे इस पात्र का एक बूँद भी तेल धरा पर न गिर पाए। 

“यह कार्य सरल तो नहीं है लेकिन आपकी कृपया होने पर कोई भी कार्य असंभव नहीं है प्रभु ऐसा नारद बोले और वह पात्र सर पर रख लिया। ‘उफ थोड़ा सा ध्यान चूका तो तेल छलक जाएगा। ” सोचते हुए नारद जी पात्र लिए पहाड़ी की ओर चल दिए। 

नारद पहाड़ी तक गए और वापस भी आ गए। भगवान विष्णु बोले __”लौट आए नारद ! नारद जी बोले हाँ प्रभु। 

भगवान विष्णु बोले अब ये बताओ की इतनी दूर जाने और आने में तुमने कितनी बार मेरा स्मरण किया/”

“एक बार भी नहीं भगवन। ” नारद बोले ___ “करता भी कैसे ? मेरा सारा ध्यान तो पात्र और उसमे भरे तेल में ही लगा रहा। “

“तब तुम ही सोचो। ” श्री हरि बोले _____”वह किसान दिन भर कठिन श्रम करता है। फिर भी समय मिलने पर मेरा स्मरण जरूर करता है। तुम केवल तेल से भरे पात्र को सर पर रख लेने के कारण एक बार भी मेरा स्मरण नहीं कर पाए। नारद जी भगवान विष्णु के कहने का अर्थ जान चुके थेवे हाथ जोड़कर बोले ___ “आप सत्य कहते हैं प्रभु ,वो किसान अपने सर पर अपने परिवार के जिम्मेदारियों का बोझ सहकर भी आपको नहीं भूला और मैं एक तेल का पात्र सिर पर रखने से ही आपको भूल गया। ” 

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