श्री कृष्ण ने कैसे की नलकुबेर और मणिग्रीव की मुक्ति जाने यह रोचक कथा

hindi kahani narad ka shrap

एक बार धन और ऐश्वर्य के मद में चूर धनपति कुबेर के पुत्र नलकुबेर और मणिग्रीव एक सरोवर में स्नान कर रहे थे। सरोवर के किनारे खड़े अन्य लोग भी स्नान करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन अहंकारी कुबेर पुत्रों के कारण किसी का साहस सरोवर में प्रवेश करने का नहीं हो रहा था।

तभी आकाश मार्ग से जाते हुए उन्हें देवर्षि नारद दिखाई दिए, उनके मुख से नारायण नारायण का स्वर सुनकर सरोवर के किनारे स्नान के लिए प्रतीक्षा करते लोग उन्हें प्रणाम करने लगे। लेकिन नलकुबेर और मणिग्रीव तो अपने पिता के धन के कारण दंभ से भरे हुए थे।

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उन्होंने नारद को नमन करने के स्थान पर उनकी और मुंह बिचकाया और उनका उपहास उड़ाया दोनों के व्यवहार से क्रोधित होकर नारद ने उन्हें श्राप दे दिया। जाओ मृत्यु लोक में जाकर वृक्ष बनजाओ, श्राप के कारण उसी समय दोनों मृत्युलोक में गोकुल में नंद बाबा के द्वार पर पेड़ बन कर खड़े हो गए। कुबेर को अपने पुत्रों की दुर्दशा की खबर मिली तो वह बहुत दुखी हुआ और देवर्षि नारद से बार-बार क्षमा याचना करने लगा।

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नारद को उस पर दया आ गई उन्होंने अपने श्राप का परिमार्जन करते हुए कहा अभी तो कुछ हो नहीं सकता किंतु, जब द्वापर में भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में गोकुल अवतरित होंगे और दोनों वृक्षों का स्पर्श करेंगे तब उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। नारद के वचनों को सिद्ध करने के लिए ही मानो वासुदेव श्री कृष्ण को गोकुल के राजा नंद के घर पलने के लिए छोड़ा गया।

वैसे तो सभी जानते हैं कि कृष्ण को गोकुल छोड़ आने का उद्देश्य था प्रजा को कंस के अत्याचारों से बचाना। नंद की पत्नी यशोदा ने कृष्ण को बड़े लाड प्यार से पाला था परंतु कृष्ण को तो अपनी लीला रचाई थी, ग्वालिनों के घर से माखन चुराना उनके मटकी फोड़ देना घर के मक्खन को ग्वाल शाखाओं में बांटना आदि खेल कृष्ण करते थे।

एक दिन सुबह-सुबह माता यशोदा दही मत रही थी और नंद बाबा गोशाला में बैठकर गायों का दूध दुआ रहे थे तभी कृष्ण जाग गए और माता यशोदा से दुग्ध पान की जिद करने लगे। किंतु काम में व्यस्त होने के कारण यशोदा को थोड़ा सा विलंब हो गया बस फिर क्या था कृष्ण रूठ गए, और गुस्से में मथनी ही तोड़ डाली यशोदा को क्रोध आ गया उन्होंने एक रस्सी से कृष्ण को बांध दिया और रस्सी एक ओखल से बांध दी।

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कृष्ण ठहरे अंतर्यामी उन्हें अपने दरवाजों के दो शापित वृक्षों की याद आ गई नारद द्वारा शापित कुबेर के पुत्र काफी समय तक अपनी अशिष्टता की सजा पा चुके थे अब उन्हें मुक्त करना था। ऐसा सोचकर वह ऊखल किसकाते हुए कृष्ण आगे बढ़े और दोनों वृक्षों के समीप आकर उनका स्पर्श किया और उखल से धक्का मारा दोनों वृक्ष तत्काल भूमि पर आ गिरे।

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वृक्षों के गिरने से जो भारी शोर हुआ उसे सुनकर नंदबाबा, माता यशोदा सहित सभी पड़ोसी वहां दौड़ते हुए पहुंचे तब सभी ने एक चमत्कार देखा उन वृक्षों से दो सुंदर युवक जो कोई देवता जैसे लग रहे थे कृष्ण के सामने हाथ जोड़े खड़े थे इस प्रकार दोनों कुबेर पुत्र नारद मुनि के श्राप से मुक्त होकर अपने लोक को लौट गए।