पौराणिक कहानी उर्वशी का श्राप | Hindi story Urvashi Ka Shrap

Hindi story Urvashi Ka Shrap

Hindi story Urvashi Ka Shrap:- कहानी उर्वशी और अर्जुन की पांडव द्यूत क्रीड़ा में हारकर बारह वर्षो का वनवास काट रहे थे। उन्हें एक वर्ष अज्ञातवास का समय भी व्यतीत करना था। पहचान लिए जाने पर उन्हें पुनः बारह वषों का वनवास काटना पड़ता। उनमें चार भाईयों का छुपना तो सरल था लेकिन अर्जुन का छिपन बहुत मुश्किल था।

देवराज इंद्र को अपनी अलौकिक शक्तियों के कारण आने वाली घटनाओं का आभास भी था। उन्हें अपने धर्म पुत्र अर्जुन की दसा देख बहुत चिंन्ता होने लगी। उन्होंने अर्जुन को स्वर्ग बुलाने का निमंत्रण भेजा। जब अर्जुन स्वर्ग पहुंचा तो सभी ने उसका बहुत स्वागत किया। देवराज इंद्र ने तो अर्जुन को एक विशेस देवासन में बिठाया।

अर्जुन स्वर्ग के भोगों में लिप्त न होकर दिव्या अस्त्रों शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने लगा। इस प्रकार अर्जुन बहुत से अस्त्रों शस्त्रों का संधान करने में पारंगत हो गया। अर्जुन को स्वर्ग में रहते पांच वर्ष बीत चुके थे। 

 

एक दिन इंद्र ने देखा अर्जुन अपलक नेत्रों से उर्वशी को निहार रहे हैं, तो चित्रसेन के माध्यम से उर्वशी को अर्जुन की सेवा में उपस्थित होने का आदेश दिया। इधर अर्जुन के सौन्दर्य, स्वभाव , रूप , व्रत ,जितेन्द्रियता आदि के कारण उर्वशी पहले ही अर्जुन पर मोहित हो चुकी थी।

देवराज इंद्र का आदेश पाकर वह प्रशांत से भर गई। उसने आंनद के साथ सुगंधस्नान किया। वह अनुपम सुंदरी तो थी ही, अच्छे – अच्छे वस्त्रों और आभूशणों ,सुगंधित पुष्पों की माला धारण कर वह इस प्रकार सज धजकर कर मुस्कुराती हुई अर्जुन के पास पहुँच गई। सजी धजी उर्वशी को देखकर अर्जुन मन ही मन अनेक प्रकर की शंकाएं करने लगे।

संकोचवश वे आँखें बंद कर उसे प्रणाम कर वे उसे बोले ___”देवी ! मैं तुम्हारे चरणों में मस्तक रख कर प्रणाम करता हूँ। बताओ मेरे लिए क्या आज्ञा है। “अर्जुन के मुख से यह बात सुनकर उर्वशी के होश हवास गम हो गए, वह अचेत सी हो गई। 

उसने कहा ___ देवराज इंद्र की सभा में आप मुझे अपलक नयनों से निहार रहे थे। यह देखकर देवराज इंद्र और चित्र सेन से मुझे आपकी सेवा करने के लिए भेजा है, इसमें आज्ञा की बात ही नहीं। आपके गुणों ने मेरे चित्त को आपकी ओर खींच लिया है। आप प्रेम पूर्वक मुझे स्वीकार कीजिए।

”अब तो अर्जुन को काटो तो खून नहीं ,वे लज्जा से गड गए और हांथों से दोनों नेत्र मूंदकर बोले ____”देवी सभा में मैने आपको उर्वशी की जननी समझकर पूज्य भाव से देखा था, न की किसी अन्य भाव से। मेरी दृष्टि में तुम माता के सामान पूज्यनीय हो। ” उर्वशी ने कहा ___ “हम अप्सराओं का किसी के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। हम अप्सराएं स्वतंत्र है।

पुरुवंश के कितने ही पोते – नाती तपस्या करके स्वर्ग में आते है और हम अप्सराओं के साथ स्वर्ग का सुख भोगते है। “सांसरिक संबंधों को भुलाकर मुझे स्वीकार करो और मेरा त्याग करने की भूल कभी मत करना। परन्तु इस पर अर्जुन ने बड़े ही निर्भीक शब्दों में कहा_____” सभी दिशाएँ और देवता सुन लें मेरी दृष्टि में माता कुंती और माद्री का जो स्थान है वही स्थान तुम्हारा भी है, अतः मैं कभी भी तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता।”

अर्जुन का तिरस्कार सुनकर उर्वशी क्रोध के मरे कांपने लगी। उसने अर्जुन को श्राप दिया ___”अर्जुन ! मैं देवराज इंद्र की आज्ञा से तुम्हारे पास आई हूँ और तुम मेरा तिरस्कार कर रहे हों ,तुम्हें नर्तक होकर स्त्रियों में रहना पड़ेगा और जिस तरह तुमने मेरा अपमान किया है उसी तरह सम्मान रहित होकर तुम नपुंसक के रूप में जाने जाओगे।

“ऐसा कहकर वह अपने निवास स्थान पर लौट आई। चित्रसेन ने सारी बातें इंद्र से कहीं। देवराज इंद्र ने अर्जुन को यह बतला दिया की उर्वशी के द्वारा दिया गया श्राप गुप्तवास में बहुत काम आएगा। तुम्हारे जैसा पुत्र पाकर कुंती सचमुच में पुत्रवती है। पुत्र ! आज तुमने देवलोक में आए प्रवृत्ति मुनियों और सिद्धों के लिए मर्यादा का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिनको आदर्श मानकर स्वर्ग में सदा उसकी चर्चा की जाएगी। 

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