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जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनीव्यक्ति थे। वे महान् कवि, सफल उपन्यासकार एवं नाटककार भी थे। जयशंकर प्रसाद जी की प्रतिभा, पांडित्य, अध्ययन दर्शन और गंभीर चिंतन की छाप इनकी रचनाओं में दिखाई देती है। नाटककार के रूप में इनका स्थान सर्वोपरि माना जाता है जयशंकर प्रसाद ने विशाख, अजातशत्रु, राज्यश्री, स्कंद गुप्त, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों की रचना की। जयशंकर प्रसाद जी एक उच्च कोटि के कवि एवं नाटककार थे उन्होंने अपने उपन्यासों में यथार्थवादी चित्रण को स्थान दिया।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 12
जयशंकर प्रसाद जी का जन्म काशी के सुँघनी साहू नाम के एक प्रसिद्ध संपन्न वैश्य परिवार में सन् 1889 ई. में 30 जनवरी को हुआ था। शैशव काल से ही इनका कविता के प्रति गहरा अनुराग रहा था। प्रसाद जी घर पर ही मनन -चिन्तन एवं स्वाध्याय से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। जयशंकर प्रसाद की मृत्यु सन् 1937 ई. में 48 साल की अल्पायु में वे स्वर्ग गमन कर गए।

जीवन परिचय बिंदु | जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय |
पूरा नाम | जयशंकर प्रसाद |
धर्म | हिन्दू |
जन्म | 30 जनवरी 1889 |
जन्म स्थान | वाराणसी उत्तरप्रदेश |
पिता | देवीप्रसाद |
मृत्यु | 15 नवम्बर 1937 |
रचनाएं | कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना, आंसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक |
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं
जयशंकर प्रसाद जी निश्चित ही बहुमुखी, प्रतिभा-सम्पन्न एवं छायावाद के जनक और एक युग-प्रर्वतक महाकवि थे इसमें कोई संदेह नहीं है। कंकाल उपन्यास में संसार में आई समस्याओं को चित्रित करके प्रसाद जी ने सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित करने का प्रयास किया प्रसाद जी की प्रारंभिक रचनाएं ब्रजभाषा में हैं परंतु शीघ्र ही वे खड़ी बोली के क्षेत्र में आ गए।
उनकी खड़ी बोली परिष्कृत संस्कृत नेस्ट एवं साहित्यिक सौंदर्य से युक्त है इनकी काव्य शैली परंपरागत एवं नवीन अभिव्यक्ति का अनुपम समन्वय है विषय भाव के अनुसार उचित शैलियों जैसे वर्णनात्मक भावात्मक आदि के अंतर्गत अपनी रचना में प्रसाद जी ने सौंदर्य एवं प्रेम दर्शनिक ता प्रकृति चित्रण मानव के अंत प्रकृति का चित्रण तथा नारी के महत्व आदि प्रवृत्तियों को सम्मानित किया है।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं :- कामायनी (महाकाव्य), लहर, करुणालय, आँसू, झरना, महाराणा का महत्त्व, प्रेम पथिक, कानन कुसुम
जयशंकर प्रसाद के नाटक:- जयशंकर प्रसाद जी के प्रमुख नाटक निम्न है – अजातशत्रु, राज्यश्री, प्रायश्चित्त, सज्जन, कल्याणी, परिणय, विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त, एक-घूँट, ध्रुवस्वामिनी।
जयशंकर प्रसाद के उपन्यास:- कंकाल, तितली, इरावती।
जयशंकर प्रसाद की काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष–प्रसाद जी छायावाद के प्रतिनिधि कवि तथा प्रमुख स्तम्भ हैं। इनके काव्य के भावपक्ष की विशेषताएँ निम्नवत् हैं :
समरसता का संदेश प्रसाद ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में समरसता का सन्देश दिया है। जैसे-जैसे मानव,जगत एवं जीवन के अखण्ड रूप से परिचित होने लगेगा, वैसे ही मनु की तरह विषमता समाप्त होने लगेगी तथा समरसता का संचार प्रारम्भ होगा।
छायावाद के जनक-हिन्दी काव्य में छायावाद का शुभारम्भ करने का श्रेय प्रसाद को ही जाता है। उनकी कविता में छायावाद की सम्पूर्ण विशेषताएँ तथा चरमोत्कर्ष विद्यमान है।
प्रेम-वेदना की मर्मस्पर्शी झाँकी प्रसाद के काव्य में प्रेम एवं वेदना के मार्मिक चित्र अंकित किये गये हैं। प्रिय के विरह में जिन्दगी की वाटिका नष्ट हो चुकी है। कलियाँ बिखर गई हैं तथा पराग चारों ओर फैल रहा है। अनुराग-सरोज शुष्क हो रहा है।
दार्शनिकता का पुट–प्रसाद के काव्य में दार्शनिकता का पुट भी देखा जा सकता है। प्रसाद मूलतः एक दार्शनिक कवि हैं। काव्य में आनन्दवाद की बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है। दार्शनिकता की वजह से काव्य में रहस्यात्मकता का स्वाभाविक ही सामंजस्य हो गया है।
प्रकृति चित्रण-प्रसाद जी ने अपने काव्य में प्रकृति के मृदु एवं कर्कश (कठोर) दोनों रूपों का जीवन्त वर्णन प्रस्तुत किया है।
राष्ट्रीय भावों का चित्रण प्रसाद जी ने राष्ट्र के प्रति भी अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया है। वे प्रेम की मदिरा का पान करके भी राष्ट्र के प्रति उदासीन नहीं हुए हैं।
jaishankar prasad (ब) कलापक्ष
भाषा-प्रसाद जी की भाषा परिमार्जित,व्याकरण सम्मत,संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। भाषा में माधुर्य,ओज एवं प्रसाद गुण कूट-कूट कर भरा हुआ है। भाषा भावानुकूल एवं सरस है। शब्द-चयन अनूठा है। लाक्षणिकता उनकी कविता का श्रृंगार है।
अलंकार योजना प्रसाद का काव्य अनेक प्रकार के प्राचीन एवं नवीन अलंकारों से मंडित है। सभी अलंकार भाव प्रकाशन में सहयोगी हैं। परम्परागत अलंकारों के अलावा प्रसाद जी ने ‘विशेषण विपर्यय’ तथा ‘मानवीकरण’ नामक पाश्चात्य अलंकारों का भी अपने काव्य में सफल प्रयोग किया है।
छन्द योजना–प्रसाद जी ने नवीन छन्दों को अपने काव्य में स्थान दिया है। ये उनकी कल्पना की उर्वरता तथा मौलिकता का प्रमाण हैं। आँसू में अपनाये गये छन्द को ‘ऑस’ छन्द के नाम से सम्बोधित करते हैं। नाद तथा तान में इनके छन्दों की तुलना संस्कृत में ‘मेघदूत’ से की जा सकती है।
jaishankar prasad साहित्य में स्थान:- प्रसाद जी का आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रमुख स्थान है। उनकी कविता में नई अभिव्यंजना शैली का मादक बसन्त अपनी शोभा बिखेर रहा है। यत्र-तत्र संगीत का मधुर नाद उल्लास की हिलोरें उत्पन्न कर रहा है। लय-तान युक्त कोमलकान्त पदावली में पीड़ा की वंशी निनादित है। समस्त प्राणियों के प्रति स्नेह एवं करुणा व्यक्त करने का आह्वान है। एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा कहानीकार के रूप में वे सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय
जयशंकर प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनीव्यक्ति थे। बाल्य काल से ही उनका झुकाव हिंदी साहित्य की तरफ था। जयशंकर प्रसाद जी की प्रतिभा, पांडित्य, अध्ययन दर्शन और गंभीर चिंतन की छाप इनकी रचनाओं में दिखाई देती है।
जयशंकर प्रसाद जी ने केवल 9 वर्ष की आयु में एक सवैया जिसका नाम ‘कलाधर’ है लिखकर अपने गुरु – “रसमय सिद्ध” को भेंट की। नाटककार के रूप में इनका स्थान सर्वोपरि माना जाता है जयशंकर प्रसाद ने विशाख, अजातशत्रु, राज्यश्री, स्कंद गुप्त, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों की रचना की।
आपको बता दें की जयशंकर प्रसाद जी साहित्यिक जीवन कि शुरुवात में उनके बड़े भाई चाहते थे की वे अपना परिवारिक करोबार संभालें लेकिन जब उन्होंने देखा की जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर चुके है तो उन्होंने भी जयशंकर प्रसाद को साहित्यिक की और जाने की अनुमति दे दी।
इसके बाद जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ और वे पूरी तनमयता और निष्ठा के साथ परिचय हिन्दी साहित्य लेखन और काव्य रचना के क्षेत्र में लिप्त हो गए।
जयशंकर प्रसाद से जुड़े कुछ सवाल और उनके जवाब।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद का प्रथम नाटक कौन सा है?
उत्तर:- “राजश्री” जयशंकर प्रसाद जी का प्रथम ऐतिहासिक नाटक है ।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद के नाटक के नाम?
उत्तर:- जयशंकर प्रसाद जी के प्रमुख नाटक निम्न है – अजातशत्रु, राज्यश्री, प्रायश्चित्त, सज्जन, कल्याणी, परिणय, विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त, एक-घूँट, ध्रुवस्वामिनी।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद के गुरु का नाम?
उत्तर:- जयशंकर प्रसाद के गुरु का नाम “रसमय सिद्ध” जी था।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?
उत्तर:- कामायनी (महाकाव्य), लहर, करुणालय, आँसू, झरना, महाराणा का महत्त्व, प्रेम पथिक, कानन कुसुम, नाटककार के रूप में इनका स्थान सर्वोपरि माना जाता है जयशंकर प्रसाद ने विशाख, अजातशत्रु, राज्यश्री, स्कंद गुप्त, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी जैसे ऐतिहासिक नाटकों की रचना की।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद की दो रचनाएं
उत्तर:- अजातशत्रु, राज्यश्री जयशंकर प्रसाद की दो रचनाएं है।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद का जन्म
उत्तर:- जयशंकर प्रसाद जी का जन्म काशी के सुँघनी साहू नाम के एक प्रसिद्ध संपन्न वैश्य परिवार में सन् 1889 ई. में 30 जनवरी को हुआ था।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद की किताबें
उत्तर:- जयशंकर प्रसाद की किताबें में शामिल है इनकी श्रेष्ठ रचनाएँ जैसे:- कामायनी (महाकाव्य), लहर, करुणालय, आँसू, झरना, महाराणा का महत्त्व, प्रेम पथिक, कानन कुसुम, अजातशत्रु, राज्यश्री, प्रायश्चित्त, सज्जन, कल्याणी, परिणय, विशाख, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त, एक-घूँट, ध्रुवस्वामिनी आदि।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद की कहानी
उत्तर:- ‘ग्राम’, ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ तथा ‘इंद्रजाल’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कहानी है।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई
उत्तर:- जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 15 नवम्बर 1937 को हुई।
प्रश्न:- जयशंकर प्रसाद का नाटक नहीं है
उत्तर:- मगधीरा जयशंकर प्रसाद का नाटक नहीं है
इस लेख में अपने जयशंकर प्रसाद जी के बारे में संछिप्त जानकरी प्राप्त की हमने इस लेख में आपको काम शब्दों में अधिक जानकरी देने की कोशिश की है उम्मीद है जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय से जुड़ा यह लेख आपको पसंद आया होगा। अपनी प्रतिक्रिया हमने जरूर दें।
आपने हमें इतना समय दिया आपका बहुत धन्येवाद। कृप्या इस पोस्ट को शेयर जरूर करें आपके सहयोग की आशा है।
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