kabir das biography in hindi:- कबीरदास का हिन्दी के निर्गुणमार्गी सन्त कवियों में शीर्षस्थ स्थान है। वे सारग्राही महात्मा थे। पढ़े-लिखे न होने पर भी बहुश्रुत थे। कबीर उन महापुरुषों में से थे,जो युग में परिवर्तन कर देते हैं। युग के प्रवाह को बदल देते हैं।
उन्होंने अन्धकार में भटकते हुए मानवों को तर्क तथा उपदेश के माध्यम से जाग्रत किया। महात्मा कबीरदास हिन्दी के भक्तिकाल की निर्गुणोपासक ज्ञानाश्रयी शाखा के सर्वश्रेष्ठ और प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।
kabir das ने उच्चवर्गीय हिन्दू-मुसलमानों के धार्मिक तथा सामाजिक आडम्बरों का विरोध कर एक ऐसे लोकधर्म की स्थापना करने का प्रयल किया था जिसे साधारण जनता अपना कर सुखी जीवन व्यतीत कर सकती थी।
जुलाहा जाति के नीमा तथा नीरू दम्पत्ति ने इन्हें पाला-पोसा। आयु बढ़ने पर कबीर ने भी जुलाहे का व्यवसाय अपनाया। अधिकांश विद्वानों की धारणानुसार कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में वाराणसी में हुआ था तथा सम्भवतः सन् 1518 ई. में मृत्यु की गोद में सदा-सदा के लिए सो गये।
kabir das biography in hindi

पूरा नाम | संत कबीरदास |
जन्म | सन 1398 (लगभग) |
जन्म | भूमि लहरतारा ताल, काशी |
पालक माता-पिता | नीरु और नीमा |
पत्नी | लोई |
कर्म | क्षेत्र समाज सुधारक कवि |
मुख्य रचनाएँ | साखी, सबद और रमैनी |
भाषा | अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी |
मृत्यु | सन 1518 (लगभग) |
मृत्यु | स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश |
कबीरदास की मुख्य रचनाएं |
kabir das अशिक्षित थे। उन्होंने स्वयं किसी भी काव्य ग्रन्थ का सृजन नहीं किया। शिष्यों ने ही उनके उपदेशों तथा दर्शन का आकलन किया। वह संकलन ‘बीजक’ के रूप में जाना जाता है।
कबीरदास की मुख्य रचनाएं:-
साखी,
सबद,
रमैनी।
कबीर दास जी की अन्य रचनाएं:-
- साधो, देखो जग बौराना – कबीर
कथनी-करणी का अंग -कबीर
करम गति टारै नाहिं टरी – कबीर
चांणक का अंग – कबीर
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार – कबीर
मोको कहां – कबीर
रहना नहिं देस बिराना है – कबीर
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ – कबीर
राम बिनु तन को ताप न जाई – कबीर
हाँ रे! नसरल हटिया उसरी गेलै रे दइवा – कबीर
हंसा चलल ससुररिया रे, नैहरवा डोलम डोल – कबीर
अबिनासी दुलहा कब मिलिहौ, भक्तन के रछपाल – कबीर
सहज मिले अविनासी / कबीर
सोना ऐसन देहिया हो संतो भइया – कबीर
बीत गये दिन भजन बिना रे – कबीर
चेत करु जोगी, बिलैया मारै मटकी – कबीर
अवधूता युगन युगन हम योगी – कबीर
रहली मैं कुबुद्ध संग रहली – कबीर
कबीर की साखियाँ – कबीर
बहुरि नहिं आवना या देस – कबीर
समरथाई का अंग – कबीर
पाँच ही तत्त के लागल हटिया – कबीर
बड़ी रे विपतिया रे हंसा, नहिरा गँवाइल रे – कबीर
अंखियां तो झाईं परी – कबीर
कबीर के पद – कबीर
जीवन-मृतक का अंग – कबीर
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार – कबीर
धोबिया हो बैराग – कबीर
तोर हीरा हिराइल बा किचड़े में – कबीर
घर पिछुआरी लोहरवा भैया हो मितवा – कबीर
सुगवा पिंजरवा छोरि भागा – कबीर
ननदी गे तैं विषम सोहागिनि – कबीर
भेष का अंग – कबीर
सम्रथाई का अंग / कबीर
मधि का अंग – कबीर
सतगुर के सँग क्यों न गई री – कबीर
उपदेश का अंग – कबीर
करम गति टारै नाहिं टरी – कबीर
भ्रम-बिधोंसवा का अंग – कबीर
पतिव्रता का अंग – कबीर
मोको कहां ढूँढे रे बन्दे – कबीर
चितावणी का अंग – कबीर
कामी का अंग – कबीर
मन का अंग – कबीर
जर्णा का अंग – कबीर
निरंजन धन तुम्हरो दरबार – कबीर
माया का अंग – कबीर
काहे री नलिनी तू कुमिलानी – कबीर
गुरुदेव का अंग – कबीर
नीति के दोहे – कबीर
बेसास का अंग – कबीर
सुमिरण का अंग / कबीर
केहि समुझावौ सब जग अन्धा – कबीर
मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा – कबीर
भजो रे भैया राम गोविंद हरी – कबीर
का लै जैबौ, ससुर घर ऐबौ / कबीर
सुपने में सांइ मिले – कबीर
मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै – कबीर
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के – कबीर
मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै – कबीर
साध-असाध का अंग – कबीर
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ – कबीर
माया महा ठगनी हम जानी – कबीर
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो – कबीर
रस का अंग – कबीर
संगति का अंग – कबीर
झीनी झीनी बीनी चदरिया – कबीर
रहना नहिं देस बिराना है – कबीर
साधो ये मुरदों का गांव – कबीर
विरह का अंग – कबीर
रे दिल गाफिल गफलत मत कर – कबीर
सुमिरण का अंग – कबीर
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में – कबीर
राम बिनु तन को ताप न जाई – कबीर
तेरा मेरा मनुवां – कबीर
भ्रम-बिधोंसवा का अंग / कबीर
साध का अंग – कबीर
घूँघट के पट – कबीर
हमन है इश्क मस्ताना – कबीर
सांच का अंग – कबीर
सूरातन का अंग – कबीर
हमन है इश्क मस्ताना / कबीर
रहना नहिं देस बिराना है / कबीर
मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया – कबीर
कबीर की साखियाँ / कबीर
मुनियाँ पिंजड़ेवाली ना, तेरो सतगुरु है बेपारी – कबीर
अँधियरवा में ठाढ़ गोरी का करलू / कबीर
अंखियां तो छाई परी – कबीर
ऋतु फागुन नियरानी हो / कबीर
घूँघट के पट – कबीर
साधु बाबा हो बिषय बिलरवा, दहिया खैलकै मोर – कबीर
करम गति टारै नाहिं टरी / कबीर
इसके अलावा कबीर दास ने कई और महत्वपूर्ण कृतियों की रचनाएं की हैं, जिसमें उन्होंने अपने साहित्यिक ज्ञान के माध्यम से लोगों का सही मार्गदर्शन कर उन्हें अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है।
कबीरदास का भाव पक्ष
कबीर का भावपक्ष अनेक विशेषताओं से मंडित है। विलक्षण व्यक्तित्व-कबीर का व्यक्तित्व विलक्षण था। यथार्थ में वे स्वभाव से सन्त थे। उनके समाज सुधार की अनूठी लगन थी। कवि बनना उनकी लाचारी थी।
धार्मिक भावना- सूफियों के प्रेमवाद का कबीर पर गहरा प्रभाव है। उनका ब्रह्म-वर्णन सौन्दर्यमय है। कबीर ने गौतम बुद्ध के समान ही विश्वव्यापी दुःख का कारण तृष्णा को ठहराया है। उन्होंने चित्त शुद्धि,सहज मन निरोध तथा आत्म-निग्रह पर विशेष बल दिया है। तीर्थाटन तथा मूर्ति पूजा का विरोध किया है।
रहस्यवाद- कबीर निर्गुण एवं निराकार ब्रह्म के उपासक हैं तथा ब्रह्म की अनुभूति ही उनके रहस्यवाद का मुख्य आधार है। रहस्यवाद के अन्तर्गत प्रेम की धारा पूर्णरूप से प्रवाहित है। कबीर के रहस्यवाद का क्षेत्र व्यापक है।
समाज सुधार की भावना कबीर के काव्य में समाज सुधार की भावना प्रमुख रूप से मुखरित है। उन्होंने धार्मिक पाखण्डों का विरोध किया। समाज में बन्धुत्व के भाव विकसित किये। बाहरी आडम्बर,तीर्थ,स्नानादि को व्यर्थ माना है। हिन्दू तथा मुसलमानों के आडम्बरपूर्ण व्यवहार का विरोध किया है। सरल जीवन, सत्यता तथा स्पष्ट व्यवहार की कबीर के काव्य में सर्वत्र गूंज है। उन्होंने समाजगत दोषों का उन्मूलन किया। रूढ़ियों में बँधे हुए समाज को मुक्त किया।
समन्वयवादी दृष्टिकोण-कबीर का काव्य समन्वयवादी भावना से ओत-प्रोत है। उसमें भारतीय अद्वैतवाद तथा इस्लाम का एकेश्वरवाद की गूंज है। हठयोगियों का साधनात्मक रहस्यवाद एवं सूफियों का भावात्मक रहस्यवाद कबीर के काव्य में समान रूप से मुखरित है।
भक्ति-भावना कबीर की भक्ति में सन्यासियों की सी भक्ति दृष्टिगोचर होती है। जो गृह त्यागकर निकम्मे बन जाते हैं, वे सहजमार्गी हैं।
कबीर दास जी के भाषा शैली?
(ब) कलापक्ष
भाषा- कबीर शिक्षित नहीं थे। उन्होंने भ्रमण तथा सत्संग के माध्यम से ज्ञान अर्जन किया था। इसी वजह से उनके काव्य की भाषा में अरबी, फारसी,खड़ी बोली,ब्रज,पूर्वी,अवधी,राजस्थानी तथा पंजाबी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग देखा जा सकता है। उनकी भाषा अपरिमार्जित है। शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा भी है। उनकी भाषा में गिरि कानन का सौन्दर्य है। उपवन जैसी काट-छाँट नहीं और न बनाव सिंगार है। भाषा में ओज है,जो सीधे वार करने में सक्षम है।
शैली- कबीर ने मुक्तक काव्य शैली को अपनाया है। पदों में लम्बे काव्य रूपक प्रयुक्त हैं।
अलंकार- कबीर के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक रूप में प्रयोग हुआ है। उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा एवं स्वभावोक्ति अलंकारों के प्रयोग से उनकी अभिव्यक्ति कलात्मक रूप में परिवर्तित हो गई है।
साहित्य में स्थान- कबीर ने अशिक्षित होते हुए भी जनता पर जितना गहरा प्रभाव डाला है.उतना अनेक बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं डाल सके हैं। साधारण जनता में लोकप्रियता की दृष्टि से तुलसी के बाद कबीर का दूसरा स्थान माना जा सकता है।
कबीरदास के गुरु कौन थे
कबीरदास जी के गुरु स्वामी रामानंद जी थे। कबीर जी ने अपने कुछ ग्रंथो में अपने गुरु के बारे में बाते की है। ज्ञान की दृष्टि से देखें तो महात्मा कबीर दास हर तरह के ज्ञान में निपुण थे। केवल 5 साल की उम्र में उन्हें गीता, कुरान, बाइबल, महाभारत जैसे विभिन्न धर्म और भाषा के किताबों को कंठस्थ कर लिया था। कुछ लोग का मानना था की रामानंद जी और कबीर जी के विचार और शिक्षा विभिन्न थी तो यह कैसे संभव है की रामानंद जी कबीर जी के गुरु हो, रामानंद जी ही वास्तव में कबीर जी के गुरु थे।
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