मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और रचनाएँ, कविताएं, भाषा, शैली, एवं साहित्य में स्थान

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और रचनाएँ, कविताएं, भाषा, शैली, एवं साहित्य में स्थान

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और रचनाएँ:- दोस्तों, इस पोस्ट में हम मैथिलीशरण गुप्त के बारे में इसके अलावा मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, मैथिलीशरण गुप्त की कविताएं, मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ, और मैथिलीशरण गुप्त किस युग के कवि हैं, के बारे में भी जानकारी देने जा रहे है। तो यदि आप भी मैथिलीशरण गुप्त के बारे में और ज्यादा जानना चाहते है तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और रचनाएँ

मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म झांसी जनपद के चिरगांव नामक ग्राम में अगस्त 1886 में हुआ। गुप्त जी के पिता वैष्णव भक्त थे इसी का प्रभाव शैशव काल से ही गुप्तजी पर भी पड़ा। मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपने लेखन काल में प्रबंध काव्य, खंड काव्य, मुक्तक काव्य आदि सभी विधाओं में रचनाएं की।

मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त

इनका पहला खंडकाव्य रंग में भंग वर्ष 1909 में प्रकाश में आया इसके 3 वर्ष पश्चात वर्ष 1912 में भारत भारती का प्रकाशन हुआ भारत भारती में देश के प्रति प्रेम, गर्व और गौरव की भावनाएं प्रस्तुत की गई हैं। भारत भारती की ख्याति से है गुप्त जी को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। 12 दिसम्बर 1964 को इनकी मृत्यु हुई।

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय

जन्म 3 अगस्त, सन् 1886 ई0
जन्म स्थान – चिरगाँव (झाँसी)चिरगाँव (झाँसी)
पिता सेठ रामचरण गुप्त
मुख्य रचनाएँ साकेत, भारत-भारती, यशोधरा, द्वापर, पंचवटी, सिद्धराज
भाषा खड़ी बोली, सरल, सुसंगठित, प्रसाद तथा ओजगुण से युक्त
शैली उपदेशात्मक शैली, प्रबन्धात्मक शैली, नीति शैली, विवरणात्मक शैली
मृत्यु  12 दिसम्बर, सन् 1964 ई०

गुप्ता जी ने रामायण के प्रसंगों पर कई काव्यों की रचना की उनमें ‘साकेत’ और ‘पंचवटी’ (क्रमशः महाकाव्य और खंडकाव्य) उल्लेखनीय है। ‘साकेत’ रामायण से संबंध होने पर भी वाल्मीकि या तुलसी दास जी की राम कथा का अनुसरण नहीं करता।

‘पंचवटी’ में भी गुप्त जी ने अपनी काव्य प्रतिभा का अच्छा परिचय दिया है, राम काव्य के अतिरिक्त नारी जाति के प्रति गुप्त जी का ध्यान सदैव बना रहा और उन्होंने उपेक्षित नारियों जैसे – उर्मिला, यशोधरा, विष्णु प्रिया, केकई, हिडिंबा आदि को अपने काव्य में सम्मान पूर्ण स्थान देकर हिंदी साहित्य में प्रसिद्धि प्राप्त की।

गुप्तजी ने ‘तिलोत्तमा’ ‘चंद्रहास’ और ‘अवध’ नामक 3 नाटक भी लिखे हैं, उनके मुक्तक काव्यों में गीत, प्रगीत, लोकगीत आदि के अनेक रूप बहुत होते हैं।

मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली

भाषा शैली :- गुप्तजी ने ब्रजभाषा के स्थान पर सरल शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ी बोली में का विसर्जन करके उसे काव्य भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है गीता सहजता प्रवाह मेहता सरलता एवं संगीत मकता उनकी काव्य शैली के अंग हैं इनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम नारी महत्व भारतीय संस्कृति का चित्रण प्रकृति चित्र आदि प्रवृत्तियों का समावेश है गुप्त जी का रचना संसार विविधता पूर्ण है अपने काव्य के माध्यम से इन्होंने भारतीय संस्कृति को उजागर करने का प्रयास किया है।

इनके साहित्य में प्रबन्धात्मक, विवरणात्मक, उपदेशात्मक, गीति तथा नाट्य शैली का प्रमुख रूप से प्रयोग किया गया है| मुक्तक एवं प्रबन्ध दोनों काव्य-शैलियों का इन्होंने सफल प्रयोग हुआ है| इनकी रचनाओं में छन्दों की विविधता दर्शनीय है| सभी प्रकार के प्रचलित छन्दों; जैसे- हरिगीतिका, वसन्ततिलका, मालिनी, घनाक्षरी, द्रुतविलम्बित आदि में इनकी रचनाएँ उपलब्ध हैं|

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं

मैथिलीशरण गुप्त ने भारतीय साहित्य में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य के समृद्धि और विविधता को प्रकट करती हैं। उनके काव्य, नाटक, और कविता उनकी साहित्यिक महत्व की गवाह हैं।

महाकाव्य – साकेत, यशोधरा ।
खण्डकाव्य – भारत भारती, जयद्रथ वध, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, युद्ध, झंकार, पृथ्वी पुत्र, वक् संहार, शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला, प्रदक्षिणा, दिवोदास, भूमि-भाग आदि।
नाटक – रंग में भंग, विरहिणी, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू, चंद्रहास आदि।
कविता-संग्रह – नर हो, न निराश करो मन को, नक़ली क़िला, मनुष्यता, केशों की कथा, भारतवर्ष, द्रौपदी-दुकूल, भीष्म प्रतिज्ञा, विशाल-भारत, संबंध, मंगल-घट आदि।
पत्र-संग्रह – पत्रावली ।

मैथिलीशरण गुप्त जी के नाटक

गुप्त जी के अनूदित नाटक जो भास के नाटकों पर आधारित हैं। कुछ इस प्रकार से हैं –
गुप्त जी के नाटक – अनघ, चरणदास, तिलोत्तमा, निष्क्रिय प्रतिरोध।
भास के अनूदित नाटक – स्वप्नवासवदत्ता, प्रतिमा, अभिषेक, आविमारक।
कुछ अनूदित रचनाएं – रत्नावली – (हर्षवर्ध्दन)। मेघनाथ वध, विरहिणी, वज्रांगना (वीरांगना), पलासी का युद्ध, रूबाइयात उमर खय्याम, वृत्र संहार आदि।

मैथिलीशरण गुप्त किस युग के कवि हैं।

मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupta) भारतीय काव्यशास्त्र में महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं और वे आधुनिक काल के द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं। उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को छवनी, उत्तर प्रदेश (आज के बिहार) में हुआ था और उन्होंने अपने जीवन काल में कई महत्वपूर्ण काव्य रचनाएँ की।

मैथिलीशरण गुप्त के काव्य का मुख्य धारा कविता और काव्यशास्त्र पर आधारित था और उन्होंने राष्ट्रीय और सामाजिक विषयों पर अपने काव्य में महत्वपूर्ण संदेशों को प्रस्तुत किया। वे हिंदी साहित्य में छायावादी आंदोलन के महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे और उनका योगदान इस आंदोलन के प्रमुख हिस्से के रूप में माना जाता है।

 

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य में स्थान

साहित्य में स्थान:- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय थे| खड़ी बोली को काव्य के साँचे में ढालकर परिष्कृत करने का कौशल इन्होंने दिखाया | इन्होंने देश प्रेम और एकता को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी है। ये भारतीय संस्कृति के महान एवं परम वैष्णव होते हुए भी विश्व-एकता की भावना से ओत-प्रोत थे| हिंदी साहित्य में यह सच्चे मायने में इस देश के सच्चे राष्ट्रकवि थे।

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