Malik muhammad jayasi ka jeevan parichay
Malik Muhammad Jayasi:- मलिक मुहम्मद जायसी (१४६७-१५४२) हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि थे। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे।मलिक मुहम्मद जायसी प्रेममार्ग के जगमगाते रत्न हैं। वे प्रेम के अमर गायक तथा पुरोधा हे।
इनका जन्म संवत् 1549 अर्थात् 900 हिजरी (सन् 1492) के आस-पास हुआ था। ‘आखिरी कलाम’ नामक ग्रन्थ में कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है। अन्य विद्वानों ने इनका जन्म जायस अथवा गाजीपुर में स्वीकारा है। बाल्यकाल में चेचक के प्रकोप से इनकी बांयी आँख तथा कान चले गये थे।
इस वजह से इनका चेहरा कुरूप हो गया था। वे भोजपुर तथा गाजीपुर के नृप (राजा) के आश्रय में निवास करते थे। संवत् 1599 अर्थात् सन् 1542 के लगभग मृत्यु की गोद में सदा-सदा के लिए सो गये।
मलिक मोहम्मद जायसी की काव्यगत विशेषताएँ
# रचनाएँ-
पद्मावत-जायसी ने पद्मावत महाकाव्य की रचना की है। इसके अन्तर्गत चित्तौड़ के राजा रत्नसेन तथा सिंहद्वीप के राजा गन्धर्व सेन की बेटी पद्मावती की प्रेम कथा उल्लेख है।
आखिरी कलाम इसमें कयामत (प्रलय) की चर्चा है।
अखरावट-इस काव्य ग्रन्थ में ईश्वर, जीव एवं सृष्टि के संदर्भ में उनके गहन विचारों तथा सिद्धान्तों का पुट है। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष
प्रेम एवं अध्यात्म विवेचन—जायसी ने अपनी कविता में प्रेम एवं आत्मा के सन्दर्भ में गहन चिन्तन के माध्यम से उनके सम्बन्ध को उजागर किया है।।
विरह वर्णन—जायसी का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है। जायसी का विरह वर्णन प्रकृति के परिवर्तित रूपों के अनुसार बदला हुआ है। शरदकालीन ठण्डी चाँदनी यदि नायिका को जलाती है, तो अगहन की रातें बिताने में कष्ट का अनुभव होता है। बैसाख माह में चाँदनी एवं गर्मी अंगारों के समान झुलसाने वाली प्रतीत होती है।
रहस्यवाद—जायसी का रहस्यवाद भावना प्रधान है। समस्त प्रकृति में कवि को अलौकिक सत्ता की अनुभूति होती है।
श्रृंगार वर्णन—जायसी का श्रृंगार वर्णन उच्चकोटि का है। पद्मावती की सुन्दरता एवं लावण्य विवेचन में एक अभूतपूर्व बुद्धि कौशल का परिचय मिलता है।
भक्ति भावना—जायसी ने ब्रह्म को निराकार स्वीकारा है तथा इस तक पहुँचने का एकमात्र साधन प्रेम है।
प्रकृति चित्रण-शृंगार वर्णन के अन्तर्गत प्रकृति का बारहमासी विवेचन प्रशंसनीय है।
सूफी प्रभाव-जायसी ने पद्मावत का सृजन भारतीय प्रेम परम्परा के अनुरूप किया है,लेकिन उस पर सूफी प्रभाव है।
लोक संस्कृति चित्रण-पद्मावत काव्य में लोकजीवन तथा संस्कृति का मनभावन चित्रण किया है। कवि ने पद्मावती की सुन्दरता का अतिश्योक्तिपूर्ण चित्रण किया है।
जायसी की काव्य भाषा
जायसी के काव्य में भावपक्ष एवं कलापक्ष का मणिकांचन योग है।
- भाषा-जायसी के काव्य में ग्रामीण अवधी भाषा का प्रयोग है। अवधी के दोनों पक्ष पूर्वी एवं अवधी भाषा के शब्दों का विशेष रूप से अधिकांश मात्रा में प्रयोग है। समग्र रूप में कवि जायसी की भाषा बोधगम्य एवं सरस है।
- शैली—जायसी का पद्मावत काव्य विश्व साहित्य की धरोहर है। शैली का प्रयोग भी भारतीयता के प्रभाव से अछूता नहीं है। “जायसी का क्षेत्र सीमित है,पर उनकी प्रेम वेदना अत्यन्त गूढ़ है। निःसन्देह पद्मावत हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।”
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “जायसी की भाषा देशी सांचे में ढली हुई है।”
जायसी का काव्य हिन्दू परिवारों से सम्बन्धित है। इस हेतु प्रबन्ध शैली में अपने काव्य की रचना की है। हिन्दी काव्यों में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग है। इस प्रकार दोनों शैलियों के समन्वय से एक नूतन शैली अवलोकनीय है।
अलंकार-अलंकारों का जायसी ने स्वाभाविक प्रयोग किया है। रूपक,उपमा का प्रयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय है। छन्द, चौपाई तथा दोहा छन्दों का प्रयोग है। साहित्य में स्थान-सूफी काव्य परम्परा के जायसी सर्वश्रेष्ठ एवं प्रशंसनीय कवि हैं। उनके विरह तथा प्रेम के स्वर आज भी काव्य रसिकों के हृदय को रससिक्त कर रहे हैं। मीरा एवं महादेवी काव्य में भी इनकी सदृश प्रेम एवं विरह की पीड़ा गुंजित है। हिन्दी साहित्य ऐसे साहित्य मनीषी के प्रति सदैव आभारी रहेगा।