Nagarjun ka jivan parichay के बारे में आपको इस पोस्ट में जानकरी प्राप्त होगी। कवि Nagarjun एक सफल कवि तो थे ही वे एक सत्यनिष्ठ देशभक्त भी थे। वे अपने लेख में शोषण के प्रति विद्रोह का भाव रखते थे। जिस कारण उन्हें कई बार कारागार भी जाना पड़ा। तो चलिए जानते है nagarjun ka jivan parichayके बारे में।
Nagarjun ka jivan parichay
नागार्जुन जी का जन्म मधुबनी जिले के सतलखा में सन् 1911 हुआ था। यह उन का ननिहाल था। उनका पैतृक गाँव वर्तमान दरभंगा जिले का तरौनी था। आपका प्राम्भिक नाम श्री वैद्यनाथ मिश्र था इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र और माता का नाम उमा देवी था। प्रारम्भ में आप ‘यात्री’ नाम से लिखा करते थे। बाद में बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर महात्मा बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्य के नाम पर अपना नाम ‘नागार्जुन’ रख लिया।

नागार्जुन का जीवन अभावों से ग्रस्त रहा था। इन अभावों ने ही आप में शोषण के प्रति विद्रोह की भावना भर दी। व्यक्तिगत दुःख ने ही आपको मानव-मात्र के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की। नागार्जुन की आरम्भिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। देश-विदेश घूमते हुए वे श्रीलंका जा पहुँचे। वहाँ आप संस्कृत के आचार्य बन गए।
स्वाध्याय से ही आपने कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। आप सन् 1941 में भारत लौट आए। नागार्जुन ने कई बार जेल-यात्रा की। स्वतन्त्र भारत में ही आपको अपनी विद्रोही प्रवृत्ति के कारण जेल जाना पड़ा। आप में शोषण के प्रति विद्रोह का भाव विद्यमान था। वे अपनी अनुभूति को निःसंकोच अभिव्यक्ति देते थे।
नागार्जुन की रचनाएँ
नागार्जुन की रचनाओं में विविधता है। उनमें जीवन की कठोर, यथार्थ तथा स्निग्ध कल्पना का अद्भुत समन्वय हुआ है। आपकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
काव्य संग्रह–’युगाधार’, ‘प्यासी-पथराई आँखें’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘खून और शोले’ तथा ‘प्रेत का बयान’ आदि आपके काव्य-संग्रह हैं। इनमें वर्ग-संघर्ष, शोषण, विद्रोह के अतिरिक्त प्रेम, सौन्दर्य एवं प्रकृति का प्रभावी अंकन हुआ है।
भस्मांकुर- यह एक खण्डकाव्य है, जिसमें भस्मासुर और शिव की पौराणिक कथा को नवीन सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।
‘रतिनाथ की चाची’ , ‘बलचनमा’, ‘नई पौध’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, वरुण के बेटे’ आपके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। इनमें आंचलिक प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
इस प्रकार नागार्जुन ने काव्य तथा गद्य दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ साहित्य का सृजन किया है।
नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएं
नागार्जुन ने स्वाधीन भारत के कसमसाते भारतीय जनजीवन की वेदना को आपने कविता के माध्यम से उजागार किया है। प्रेम-सौन्दर्य,राष्ट्रीयता आदि के पुट ने आपके काव्य को बहुआयामी बना दिया है।आपने छन्दबद्ध एवं छन्द मुक्त दोनों प्रकार के काव्य की रचना की है। आपके काव्य के कलापक्ष में सरलता,स्पष्टता के साथ सरसता का अद्भुत संयोग है।
नागार्जुन की भाषा शैली
भावपक्ष (भाव तथा विचार)- विविध विषयक काव्य रचना करने वाले नागार्जुन की दृष्टि यथार्थवादी रही है। आपने शोषितों के प्रति सहानुभूति एवं शोषण के प्रति विद्रोह का स्वर व्यक्त किया है। यायावरी स्वभाव वाले नागार्जुन के काव्य में प्रकृति साकार हो उठी है। सहजता नागार्जुन के काव्य की प्रमुख विशेषता है। स्वाधीन भारत के कसमसाते भारतीय जनजीवन की वेदना को आपने कविता के माध्यम से उजागार किया है। प्रेम-सौन्दर्य,राष्ट्रीयता आदि के पुट ने आपके काव्य को बहुआयामी बना दिया है। समसामयिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार, उत्पीड़न,नेताओं की स्वार्थपरता आदि पर आपने करारे प्रहार किए हैं।
कलापक्ष (भाषा तथा शैली)- नागार्जुन ने सामान्य बोलचाल की खड़ी बोली में पूर्ण साहित्यिकता का संचार कर दिखाया है। सरलता, सुबोधता, स्पष्टता एवं मार्मिकता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। नागार्जुन के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। आपने छन्दबद्ध एवं छन्द मुक्त दोनों प्रकार के काव्य की रचना की है। आपके काव्य के कलापक्ष में सरलता,स्पष्टता के साथ सरसता का अद्भुत संयोग है।
साहित्य में स्थान- जनसामान्य की आशाओं, आकांक्षाओं को वाणी प्रदान करने वाले नागार्जुन के काव्य में नवचेतना का भाव भरा है। बिना किसी भय, द्वन्द्व, संकोच से अपनी बात को दमदारी से रखने वाले नागार्जुन का आधुनिक हिन्दी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी सपाट बयानी के लिए वे निरन्तर याद किए जायेंगे|
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