pradushan par nibandh,पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध:- आज पर्यावरण प्रदूषण environmental pollution विश्व के समक्ष एक विकराल समस्या की तरह उपस्थित है। पर्यावरण प्रदूषण ने मानव के जीवन को नरकतुल्य बना दिया है। आज विश्व में कोई भी देश ऐसा शेष नहीं है जो इस समस्या से ग्रस्त न हो। विश्व के वैज्ञानिक एवं मनीषी लोग इस समस्या के निवारण के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं। साधन तलाश कर रहे हैं।
पर्यावरण का अर्थ:- पर्यावरणीय प्रदूषण को समझने से पूर्व यह समझना जरुरी है कि, पर्यावरण क्या है और हमें कैसे प्रभावित करता है। ‘‘हर्षकोविट्स’’ के शब्दों में-
‘‘पर्यावरण संपूर्ण वाह्य परिस्थितियों एवं प्रभावों का जीवधारियों पर पड़ने वाला सम्पूर्ण प्रभाव है जो उनके जीवन विकास एवं कार्य को प्रभावित करता है।’’
Paryavaran pradushan par nibandh
(पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध)
paryavaran pradushan par nibandh:- आज हमारे ग्रह पर मानवता और अन्य जीवन रूपों का सामना करने वाली सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। पर्यावरण प्रदूषण को पृथ्वी / वायुमंडल प्रणाली के भौतिक और जैविक घटकों के संदूषण के रुप में परिभाषित किया जाता है। सामान्य पर्यावरणीय प्रक्रियाएं प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हैं।

प्रदूषक प्राकृतिक रूप से पदार्थ या ऊर्जा हो सकते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में होने पर उन्हें दूषित माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों की किसी भी दर का उपयोग प्रकृति द्वारा स्वयं को पुनर्स्थापित करने की क्षमता से अधिक होने पर वायु, जल और भूमि के प्रदूषण का परिणाम हो सकता है।
प्रदूषण का आशय :-
जल, वायु, पृथ्वी के रासायनिक, जैविक, भौतिक गुणों में घटित होने वाला अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण की श्रेणी में आता है। वर्तमान में विश्व नवीन युग में पदार्पण कर रहा है। लेकिन खेद का विषय है कि आज विषाक्त वातावरण उसके जीवन में जहर घोल रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार (types of environment pollution)
पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव निस्संदेह कई और व्यापक हैं। प्रदूषण के अत्यधिक प्रभाव से मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन आदि को नुकसान पहुंच रहा है। वायु, जल, मिट्टी प्रदूषण आदि सभी प्रकार के प्रदूषणों का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित मुख्य प्रकार हैं-
वायु प्रदुषण – वायु हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटक है। हम बिना खाये पिये एक दो दिन रह भी सकते हैं, लेकिन बिना श्वास के एक क्षण भी बिताना मुश्किल होता है। और सोचिए अगर जिस वायु से हम सांस लेते है, वही प्रदूषित हो गया तो हमारे लिए कितना विनाशकारी हो सकता है।
जल प्रदूषण – जल प्रदूषण तब होता है जब हानिकारक पदार्थ – जैसे रसायनों या फैक्ट्रियों का अपशिष्ट, नदी, झील, महासागर, जलभृत या पानी के अन्य स्रोत में जाकर मीलते हैं। जब हम इसे पीतें हैं, तो शरीर को दूषित करते हैं, साथ ही पानी की गुणवत्ता को कम करते हैं और इसे मनुष्यों और पर्यावरण के लिए विषाक्त करते हैं।
मृदा प्रदूषण – मृदा प्रदूषण किसी भी चीज को संदर्भित करता है जो मिट्टी के प्रदूषण का कारण बनता है और मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करता है। मृदा प्रदूषण अधिक मात्रा में कीटनाशकों, उर्वरकों, अमोनिया, पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन, नाइट्रेट, नेफ़थलीन आदि रसायनों की उपस्थिति के कारण हो सकता है।
प्रदूषण के कारण
pradushan par nibandh
प्रदूषण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृद्धि है। बढ़े हुए कल-कारखाने भी पर्यावरण प्रदूषण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वाहनों से निकलने वाला धुआँ, पानी का शुद्ध न होना, ध्वनि प्रदूषण में आविष्कृत वाहन ये सभी पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। गन्दगी फैलने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने का महत्त्वपूर्ण कारण है-
- निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या।
- वनों और वृक्षों का अनियोजित ढंग से काटा जाना।
- शहरों के कूड़े-करकट का सुनियोजित निस्तारण न किया जाना।
- जल निकासी और उसके प्रवाह का अनुचित प्रबन्ध।
पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण के उपाय:-
वृक्षारोपण, ध्वनि नियन्त्रण यन्त्रों का प्रयोग, परमाणु विस्फोटों पर रोक, कल-कारखानों में फिल्टर का प्रयोग, नुकसानदायक, रासायनिक तत्वों को नष्ट करना, नदियों में प्रवाहित गन्दगी पर रोक, इन सभी के द्वारा हम प्रदूषण को पूर्णरूप से तो नष्ट नहीं कर सकते लेकिन उसे कुछ मात्रा में कम तो कर ही सकते हैं। प्रदूषण को रोकने वाले तत्वों में प्रधान तत्व हैं-वृक्षों का आरोपण, उनकी सुरक्षा और देखभाल का उचित प्रबन्ध। प्राचीन वनों को सुरक्षित रखा जाए। नवीन वनों का प्रबन्ध किया जाए। वृक्ष लगाये जाएँ। वृक्षों की सिंचाई व्यवस्था ठीक की जाए।
उपसंहार- पर्यावरण प्रदूषण के निवारण हेतु विश्व के समस्त देश निरन्तर प्रयासरत हैं। आशा है निकट भविष्य में मनु पुत्र को इस समस्या से कुछ हद तक निजात अवश्य प्राप्त होगी। क्योंकि बीमारी का तो इलाज है लेकिन प्रदूषण द्वारा उत्पन्न रोग असाध्य है।
pradushan par nibandh- पर्यावरण प्रदूषण
रूपरेखा
- प्रस्तावना,
- प्रदूषण का अर्थ एवं अभिप्राय,
- प्रदूषण के प्रकार,
- प्रदूषण की समस्या का वर्तमान रूप,
- प्रदूषण की समस्या की रोकथाम के उपाय,
- उपसंहार।
प्रस्तावना- विज्ञान की प्रगति ने मानव-जाति को जहाँ अनेक वरदान दिये हैं, वहीं उसके कुछ अभिशाप भी हैं। इन अभिशापों में एक है—प्रदूषण। प्रदूषण की समस्या ने पिछले कुछ वर्षों में इतना उग्र रूप धारण कर लिया है कि इसकी वजह से दुनिया के वैज्ञानिक और विचारक गहरी चिन्ता में पड़ गये हैं। वैज्ञानिकों का विचार है कि इस समस्या का यदि शीघ्र ही कोई हल न खोजा गया तो सम्पूर्ण मानव जाति का विनाश सुनिश्चित है। प्रगति एवं भौतिकवाद की अंधी दौड़ में पर्यावरण प्रतिपल दूषित हो रहा है जो विनाश का सूचक है।
प्रदूषण का अर्थ एवं अभिप्राय प्रदूषण का अर्थ है दोष उत्पन्न होना। इसी आधार पर प्रदूषण शब्द से यहाँ हमारा अभिप्राय है वायु, जल एवं स्थल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में अवांछनीय परिवर्तन द्वारा दोष उत्पन्न हो जाना। इसे यों भी समझा जा सकता है कि जब हवा, पानी, मिट्टी, रोशनी, समुद्र, पहाड़, रेगिस्तान, जंगल और नदी आदि की स्वाभाविक स्थिति में दोष उत्पन्न हो जाता है, तब प्रदूषण की स्थिति बन जाती है। कोयला, पेट्रोलियम आदि ऊर्जा के प्राकृतिक भण्डारों के अत्यधिक प्रयोग से उत्पन्न धुआँ और मलवा वातावरण को दूषित कर प्रदूषण की समस्या को जन्म देता है। प्रदूषण मनुष्यों और सभी प्रकार के जीवधारियों तथा वनस्पतियों के लिए अत्यन्त हानिकारक है।
प्रदूषण के प्रकार-प्रदूषण प्रमुखतः पाँच प्रकार का होता है .
- पर्यावरण प्रदूषण,
- जल-प्रदूषण,
- थल-प्रदूषण,
- ध्वनि-प्रदूषण और
- रेडियोधर्मी प्रदूषण।
(1) पर्यावरण प्रदूषण – पर्यावरण प्रदूषण को वातावरण प्रदूषण भी कहते हैं। वातावरण का अर्थ है-वायु का आवरण। हमारी धरती हर ओर से वायु की एक बहुत मोटी पर्त से ढकी हुई है, जो कुछ ऊँचाई के बाद क्रमशः पतली होती गयी है। यह वायु अनेक प्रकार की गैसों से मिलकर बनी है।
ये गैसें वायु में एक निश्चित अनुपात में होती हैं। उनके अनुपात में कोई भी गड़बड़ी प्रकृति और जीवन के सन्तुलन को बिगाड़ सकती है। हम अपनी साँस द्वारा हवा से ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड गैस छोड़ते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड बहुत जहरीली गैस होती है।
धरती पर यह पेड़-पौधों द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को साँस के रूप में ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं। इस प्रकार वायुमण्डल में इन दोनों गैसों का सन्तुलन बना रहता है। वायुमण्डल में किसी कारण से जब कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों का अनुपात आवश्यकता से अधिक हो जाता है तो वातावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ईंधनों के जलाये जाने से उत्पन्न धुआँ वातावरण प्रदूषण का मुख्य कारण है।
पर्यावरण या वातावरण प्रदूषण सभी प्रकार के प्रदूषणों का मुख्य आधार और सर्वाधिक हानिकारक प्रदूषण है। विषैली गैसों की अधिकता के कारण धरती का वायुमण्डल गर्म हो जाता है और धरती के तापमान में वृद्धि हो जाती है। इससे ध्रुवीय बर्फ पिघलने लगती है जिससे समुद्र का स्तर ऊँचा उठ जाता है। इससे समुद्रतटीय नगरों के डूबने और बाढ़ आदि का खतरा पैदा हो जाता है। विषैली हवा में साँस लेने के कारण दमा, तपेदिक और फेफड़ों का कैंसर जैसे भयानक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। मनुष्य की जीवनी-शक्ति कम हो जाने के कारण अनेक प्रकार की महामारियाँ आदि फैलती हैं।
(2) जल- प्रदूषण-पानी के दूषित हो जाने को जल-प्रदूषण कहते हैं। जल में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ एक निश्चित अनुपात में होते हैं। जब इनके अनुपात में गड़बड़ हो जाती है और जल में हानिकारक तत्त्वों की संख्या बढ़ जाती है, तब जल-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जल में मल-मूत्र तथा कल-कारखानों द्वारा दूषित रासायनिक पदार्थों का विसर्जन जल-प्रदूषण उत्पन्न करता है।
जल-प्रदूषण होने से समुद्र, अर्थात् खारे पानी और मीठे पानी का सन्तुलन बिगड़ जाता है। नदियों में बहाये गये हानिकारक रासायनिक तत्त्व समुद्र में पहुँचकर समुद्र के जन्तुओं के लिए संकट उपस्थित कर देते हैं जिससे समुद्र का सन्तुलन बिगड़ जाता है। अशुद्ध जल के प्रयोग से अनेक प्रकार की संक्रामक बीमारियाँ हो जाती हैं और भूमि की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है।
(3) थल- प्रदूषण-मिट्टी में दोष उत्पन्न हो जाना थल-प्रदूषण के अन्तर्गत है। पेड़-पौधों और खाद्य-पदार्थों आदि को कीड़े-मकोड़ों और अन्य जानवरों से बचाने के लिए डी. डी. टी. आदि तथा खेतों में रासायनिक खाद के प्रयोग से थल-प्रदूषण उत्पन्न होता है। इससे धरती की उर्वरा-शक्ति में कमी आ जाती है। प्रयोग करने वाले के भी लिए यह घातक सिद्ध हो सकता है।
(4) ध्वनि- प्रदूषण-ध्वनि सम्बन्धी प्रदूषण को ध्वनि-प्रदूषण कहते हैं। मोटरकार, स्कूटर, हवाई जहाज आदि वाहनों, मशीनों के इन्जनों और रेडियो तथा लाउडस्पीकर आदि से उत्पन्न होने वाला असहनीय शोर ध्वनि प्रदूषण को जन्म देता है। यह मनुष्य की पाचन-शक्ति पर भी प्रभाव डालता है। इससे ऊँचा सुनना, अनिद्रा और पागलपन तक जैसे रोग हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा शोर दिमागी तनाव को बढ़ाता है।
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण- परमाणु शक्ति के प्रयोग एवं परमाणु विस्फोटों से मलवे के रूप में रेडियोधर्मी कणों का विसर्जन होता है। यही रेडियोधर्मी प्रदूषण को उत्पन्न करता है। जब कोई परमाणु विस्फोट होता है तो बहुत गर्म किरणें निकलती हैं। वे वातावरण में भी रच-बस जाती हैं। उस स्थान की वायु विषैली हो जाती है जो आगे आने वाली संतति तक पर प्रभाव डालती है। इससे वायुमण्डल और मौसमों तक का सन्तुलन बिगड़ जाता है।
प्रदूषण की समस्या का वर्तमान रूप— प्रदूषण की समस्या आधुनिक औद्योगिक एवं वैज्ञानिक युग की देन है। इस समस्या का जन्म औद्योगिक क्रान्ति से हुआ। आज धरती पर लाखों कारखाने वातावरण में विषैली गैसों का विसर्जन कर उसे गन्दा बना रहे हैं। कारखानों और मोटर वाहनों से विसर्जित जहरीली गैसों के कारण पृथ्वी का वायुमण्डल गर्म होता जा रहा है। प्रदूषण अगर इसी तरह बढ़ता गया तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन् 2100 तक वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अब से चार गुना हो जायेगी जिससे पृथ्वी का तापमान लगभग 6° से. बढ़ जायेगा।
ऐसी स्थिति में ध्रुवीय बर्फ पिघल जायेगी जिससे समुद्र तल ऊँचा हो जायेगा और अनेक समुद्रतटीय नगर डूब जायेंगे। बाढ़े आयेंगी, धरती की उर्वरा-शक्ति कम हो जायेगी और अनेक प्रकार के रोग तथा महामारियाँ फैलेंगी। 20वीं सदी के प्रारम्भ में परमाणु शक्ति के आविष्कार ने प्रदूषण के खतरे को चरम सीमा पर पहुँचा दिया है। पिछले 40 वर्षों के दौरान विश्व में लगभग 1200 परमाणु विस्फोट किये जा चुके हैं।
इनके रेडियोधर्मी प्रदूषण से कितनी हानि हो चुकी है, कितनी हो रही है और भविष्य में कितनी हानि होगी, इसका अन्दाजा लगाना भी मुश्किल है। इन परमाणु विस्फोटों से ऋतुओं का सन्तुलन भी डगमगा गया है। मौसमों का बदलाव आदि इन परमाणु विस्फोटों का ही दुष्परिणाम है। इस प्रकार आज धरती का सारा वातावरण विषाक्त हो चुका है।
कल-कारखानों से विसर्जित हानिकारक रासायनिक तत्त्व जल-प्रदूषण उत्पन्न कर रहे हैं जिससे फसलों और जीवों में अनेक प्रकार के रोग पनप रहे हैं। मोटर वाहनों आदि के भयानक शोर ने आदमी का चैन हराम कर दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रदूषण की समस्या आज अपनी चरमसीमा पर है। भारत जैसे विकासशील देश में तो यह समस्या और भी भयावह रूप धारण कर चुकी है।
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प्रदूषण की समस्या की रोकथाम के उपाय- आज सारा विश्व प्रदूषण की समस्या से ग्रसित एवं चिन्तित है और हर देश इसकी रोकथाम में लगा हुआ है। ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस आदि विकसित देशों में तेज आवाज करने वाले वाहनों में ध्वनि नियन्त्रक यन्त्र लगाये गये हैं। कारखानों द्वारा विसर्जित हानिकारक रासायनिक तत्त्वों को ये देश नदियों में नहीं बहाते, बल्कि उन्हें नष्ट कर देते हैं।
परमाणु विस्फोटों के प्रतिबन्ध और परिसीमा पर भी विश्व में विचार हो रहा है। दुर्भाग्य से भारत जैसे विकासशील देशों में अब भी प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में कोई ठोस काम नहीं हो रहा है। हमारे यहाँ अब भी मल-मूत्र और रासायनिक मलवे को नदियों में बहा दिया जाता है। यहाँ की नदियों के किनारे स्थित स्थान जल-प्रदूषण की समस्या से बुरी तरह ग्रस्त हैं। अन्य प्रकार के प्रदूषण भी हमें आक्रान्त किये हुए हैं।
भोपाल गैस काण्ड भी हमारे समक्ष एक चुनौती के रूप में उपस्थित है जिसमें अनेक लोग मौत की गोद में सो गये।
इस समस्या के निराकरण का सर्वोत्तम साधन वनों की रक्षा और वृक्षारोपण है, क्योंकि पेड़-पौधों से ही ऑक्सीजन और कार्बन-डाइऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। वृक्षारोपण के अतिरिक्त परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबन्ध, कारखानों की चिमनियों में फिल्टर का प्रयोग, मोटर वाहनों में ध्वनि नियन्त्रक यन्त्रों का प्रयोग, मल-मूत्र और कचरे आदि को नदियों में बहाने के स्थान पर उन्हें अन्य तरीकों से नष्ट कर देना आदि वे साधन हैं, जिनसे प्रदूषण की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
उपसंहार- प्रदूषण की समस्या आज एक देश की समस्या नहीं, सम्पूर्ण विश्व तथा समूची मानव जाति की है। यदि समय रहते इस समस्या को हल करने के लिए सामूहिक प्रयास नहीं किये गये तो सम्पूर्ण मानव जाति का भविष्य अन्धकारमय है। भगीरथी प्रयासों के बावजूद इस समस्या के निराकरण के आसार ही दिखाई नहीं दे रहे हैं। पर्यावरण की स्वच्छता में ही मानव की सुख एवं शान्ति निहित है।
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