Ramdhari singh dinkar:- श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जन-जागरण की काव्यधारा को प्रखर करने वाले हैं। उनकी कविताओं में योद्धा की गहन ललकार है। अनल का प्रखर ताप है। सूर्य-सा प्रचण्ड तेज है देश-प्रेम की भावना के स्वर गुंजित हैं।
इस पोस्ट में आप रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय, कविताएं, रचनाएं, निबंध और रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
Ramdhari singh dinkar ka jivan parichay
श्री रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार राज्य के मुंगेर जनपद के अन्तर्गत सिमरिया घाट गाँव में सन् 1908 ई. में हुआ था। इनके पिता एक साधारण किसान थे। ‘उर्वशी’ काव्य ग्रन्थ पर उन्हें पुरस्कार मिला।
सन् 1952 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। सन् 1954 ई.में राष्ट्रपति ने ‘पद्म भूषण’ की उपाधि प्रदान की। 24 अप्रैल,सन् 1974 ई. में मद्रास में ये काल के गाल में समा गये।
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

‘दिनकर’ जी की काव्य रचनाएँ निम्नवत् हैं-
- परशुराम की प्रतीक्षा,
- संचायिता,
- बापू,
- रेणुका,
- रसवन्ती,
- दिल्ली,
- हुँकार,
- सोमधेनी,
- धूप और धुआँ,
- इतिहास के आँसू,
- चक्रवाल,
- द्वन्द्वगीत,
- नीम के पत्ते,
- सीपी और शंख,
- नील कुसुम,
- रश्मिरथी,
- कुरुक्षेत्र आदि।
रामधारी सिंह दिनकर की काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष-आधुनिक हिन्दी के कविता क्षेत्र में ‘दिनकर’ जी का गौरवपूर्ण स्थान है। कविता में छायावादी काव्य के मादक पुष्प विकसित हैं, वहीं प्रेम की गूंज है तथा राष्ट्रीय भावना के प्रखर स्वर भी गुंजित हैं।
प्रगतिवादी स्वर-‘दिनकर’ के काव्य में प्रगतिवादी विचारधारा के स्वर तीव्र रूप में मुखरित हैं। समाज में व्याप्त विषमता के प्रति तीव्र आक्रोश है। ‘हुंकार’ तथा ‘रेणुका’ में मानवतावादी अनुगूंज है। वे जन-जीवन से जुड़े हैं।
प्रेम एवं सौन्दर्य- कवि ने प्रेम तथा सौन्दर्य के भी मादक चित्र उतारे हैं। ‘रेणुका’ नामक काव्य रचना इसका प्रबल प्रमाण है। ‘रसवन्ती’ में कवि, अनुराग में तिरोहित हैं। कवि का प्रेम के प्रति लगाव है। यौवन के प्रति ललक है।
देश-प्रेम- कवि ने अपनी कविता में देश-प्रेम के स्वर गुंजित किये हैं। भारत के स्वर्णिम अतीत का गुणगान किया है। वर्तमान की दुर्दशा पर अश्रु प्रवाहित किये हैं। साथ ही विप्लव का आह्वान भी है।
श्रृंगार वर्णन- विप्लव तथा विद्रोह की ज्वाला बरसाने वाला कवि ‘रसवन्ती’ में आकर रस से ओत-प्रोत हो गया। ‘उर्वशी’ काव्य कृति में श्रृंगार रस का पूर्ण परिपाक हुआ है।
प्रकृति चित्रण- कवि ‘दिनकर’ ने प्रकृति सुन्दरी के अनेक सौन्दर्यपूर्ण चित्र अंकित किये हैं।
रस योजना– ’दिनकर’ के काव्य में विविध रसों का पूर्ण परिपाक देखा जा सकता है। ‘कुरुक्षेत्र’ में वीर रस की जीवन्त झाँकी मिलती है। ‘रसवन्ती’ काव्य कृति श्रृंगार रस से प्रवाहित है।
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली
भाषा-‘दिनकर’ जी की भाषा परिमार्जित, शुद्ध खड़ी बोली है। आंचलिक तथा विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया है। मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा जीवन्त हो उठी है। ओज के साथ प्रसाद गुण भी भाषा में विद्यमान है। संस्कृत पदावली का भी प्रयोग है। कोमल भावों का जहाँ प्रकाशन हुआ है,वहाँ भाषा कोमलकान्त पदावली से सुसज्जित है।
अलंकार योजना-‘दिनकर’ जी का अलंकारों के प्रति विशेष झुकाव नहीं है। भावों तथा विचारों के पल्लवन हेतु उनके काव्य में अलंकारों का स्वतः ही आगमन निश्चय ही सराहनीय है। उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, उपमा तथा रूपक अलंकारों का कवि ने सफल प्रयोग किया है।
शैली-‘दिनकर’ जी के काव्य में गीति-नाट्य प्रबन्धक एवं मुक्तक शैलियों का बहुत ही सफल तथा काव्योचित प्रयोग है। शैली ओज,प्रसाद तथा माधुर्य गुण से ओत-प्रोत है।।
रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय
साहित्य में स्थान–’दिनकर’ आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख कवि हैं। उनकी कविता में महर्षि दयानन्द की सी निडरता, भगतसिंह-सा बलिदान,गाँधीजी की सी निष्ठा एवं कबीर की सी सुधार भावना एवं स्वच्छन्दता विद्यमान है। वे आधुनिक हिन्दी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं।
दिनकर जी की गणना आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है हिंदी काव्य जगत में क्रांति और और प्रेम के संयोजक के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है विशेष रूप से राष्ट्रीय चेतना एवं जागृति उत्पन्न करने वाले कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है।
Small poems of ramdhari singh dinkar in hindi
यहाँ हम आपको ramdhari singh dinkar की कविता बताने जा रहे है। यदि आपको भी ramdhari singh dinkar ki kavita का रस लेना है तो हमने उनकी कुछ कविता यहाँ प्रस्तुत कि है आप इन्हे पढ़ें।
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल
रामधारी सिंह दिनकर कविता
(रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद)
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का;
आज उठता और कल फिर फूट जाता है;
किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
मैं न बोला, किन्तु, मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से, चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
“रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।”
साभार- कविताकोश
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