sachidanand hiranand:- प्रयोगवाद के क्षेत्र में ‘अज्ञेय’ को प्रतिनिधि कवि स्वीकारा गया है। इन्होंने अपनी बचपन की आँखें देवरिया जिले के अन्तर्गत कसिया नामक जिले में सन 1911 में खोलीं। इनके पिता हीरानन्द शास्त्री पुरातत्त्व विभाग में एक उच्च अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित थे; अतः उन्हें विभिन्न स्थान देखने तथा निवास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण उनकी अध्ययन व्यवस्था पर विराम लग गया। आपने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया जिनमें दिनमान, सैनिक, विशाल भारत आदि का नाम उल्लेखनीय है। आकाशवाणी में भी कुछ समय तक कार्यभार संभाला। 4 अप्रैल, 1987 को हिन्दी प्रयोगवादी पुरोधा सदा-सदा के लिए मौत के आगोश में समा गया।

अज्ञेय की रचनाएँ
रचना क्षेत्र में अज्ञेय’ जी का क्षेत्र बहु आयामी है। आपने कविता, गद्य, निबन्ध, कहानी,संस्करण तथा उपन्यास भी लिखे हैं।
sachidanand hiranand कविता- संग्रह-सागर मुद्रा,अरी ओ करुणा प्रभामय,हरी घास पर क्षण भर, इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये, भग्नदूत, आँगन के पार द्वार आदि।
sachidanand hiranand निबन्ध- आत्मनेपद।
sachidanand hiranand उपन्यास- अपने-अपने अजनबी, नदी के द्वीप,शेखर की जीवनी। काव्यगत विशेषताएँ
अज्ञेय के भावपक्ष एवं कलापक्ष का वर्णन कीजिए।
प्रकृति के प्रति अज्ञेय जी का विशेष लगाव है। उन्होंने आसमान, बादल, समुद्र, लहरें, तारागण, नक्षत्र एवं चाँदनी आदि का वर्णन अपनी कविता में किया है प्रेम एवं सौन्दर्य का मर्मस्पर्शी चिन्तन-अज्ञेय जी ने अपनी कविता में प्रेम एवं सौन्दर्य, मनुष्य के प्रति लगाव को मानव की सहज प्रवृत्ति के अन्तर्गत स्वीकारा है। अज्ञेय जी की कविता में श्रृंगार के दोनों पक्षों-संयोग तथा वियोग का मनोरम तथा सजीव चित्रण है।
(अ) भावपक्ष- प्रेम एवं सौन्दर्य का मर्मस्पर्शी चिन्तन-अज्ञेय जी ने अपनी कविता में प्रेम एवं सौन्दर्य, मनुष्य के प्रति लगाव को मानव की सहज प्रवृत्ति के अन्तर्गत स्वीकारा है। यदि प्रेमानुभूति अपूर्ण रहती है तो उसका मन दुःखी तथा उदास हो जाता है।
1.रहस्यवादी अनुभूतियाँ- संसार में परिवर्तन के सदृश जैसे संहार, कोलाहल,प्रेम एवं घृणा विराट सत्ता का उपहार ही है। कवि उस विराट के प्रति एकाकार होने का भाव मन-मानस में सँजोए हुए है।
2.रस योजना- अज्ञेय जी की कविता में श्रृंगार के दोनों पक्षों-संयोग तथा वियोग का मनोरम तथा सजीव चित्रण है। वीर, करुण तथा रौद्ररस प्रयोग तो किया है,लेकिन उसमें नीरसता न होकर सरसता का पुट है।
3.प्रकृति-चित्रण- प्रकृति के प्रति अज्ञेय जी का विशेष लगाव है। उन्होंने आसमान, बादल, समुद्र, लहरें, तारागण, नक्षत्र एवं चाँदनी आदि का वर्णन अपनी कविता में किया है। मानव कल्याण की महत्ता—इनकी कविता में मानव कल्याण की भावना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वही मनुष्य आदर्श एवं महान है,जो सच्चे मन से मानव कल्याण में रत है।
कलापक्ष
भाषा- अज्ञेय ने अपने काव्य में भाषा का भावों के अनुरूप प्रयोग किया है। इसके लिए उन्होंने तत्सम प्रधान व संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इन्होंने अपनी भाषा में कहीं भी कठिन शब्दावली का प्रयोग नहीं किया है। यथास्थान इन्होंने अंग्रेजी व फारसी शब्दों का भी प्रयोग किया है।
शैली- प्रयोगवादी धारा के प्रतिनिधि कवि होने के कारण इन्होंने अपने काव्य को नवीन शैली व नये बिम्बों और उपमानों से सजाया-सँवारा है।
उन्होंने प्राचीन रूढ़ियुक्त शैली का कहीं भी प्रयोग न करके भावों के अनुरूप शैली का प्रयोग करके कविता को नये साँचे में ढाला है।
अलंकार- अलंकार ही काव्य का प्राण है तथा आत्मा है। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए इन्होंने अपने काव्य में उपमा, रूपक, श्लेष एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग कर अपने काव्य को अलंकृत किया है।
छन्द- अज्ञेय जी ने नये प्रयोग और नये आयाम काव्य जगत को प्रदान किये। इसी कारण इन्होंने छन्दों के बन्धन को स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने मुक्त छन्द का प्रयोग किया है। ध्वनियों का पर्याप्त ज्ञान होने के कारण अनेक गीतों की रचना की है।
sachidanand hiranand साहित्य में स्थान- अज्ञेय हिन्दी साहित्य के नक्षत्र के सदृश हैं। इन्होंने काव्य गद्य, निबन्ध, उपन्यास आदि की प्रस्तुति नवीन ढंग से करके हिन्दी साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया। इन्होंने ‘तारसप्तक’ का प्रकाशन करके प्रयोगवादी काव्य में चार चाँद लगा दिये।