सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म 1920 में अल्मोड़ा नामक जिले के कौसानी ग्राम में हुआ था। सुमित्रानंदन पंत जी आपने सभी भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। सुमित्रानंदन पंत जी के बचपन का नाम गोसाई दत्त था। सुमित्रानंदन पंत जी के पिता का नाम गंगा दंत पंथ था और उनकी माता का नाम सरस्वती देवी था। पंत को प्रकृति का चित्र चोर कवि कहा जाता है। वर्ष 1922 से 1930 तक पंत की जो रचनाएँ प्रकाश में आई वह उनके छायावादी काव्य की रचनाएं मानी जाती है। पल्लव, वीणा ग्रंथि और गुंजन आदि रचनाओं का प्रकाशन कवि की काव्य साधना के नवीन रूप को उद्घाटित करता है जो प्रकृति और मानव सौंदर्य के प्रति कवि की काव्य चेतना का सूचक है।
पंत का कृतित्व हिंदी साहित्य के आधुनिक चेतना का प्रतीक है, जो जीवन मूल्यों के निर्माण की ओर अग्रसर है। उत्तरा युगपथ, स्वर्णधूलि, स्वर्ण किरण आदि रचनाएं उनके जीवन चिंतन को एकांगी ना बनाकर सार्वभौमिक दृष्टि से युगधर्म के सामाजिक और नैतिक पहलुओं के साथ आध्यात्मिक चेतना को उद्घाटित करती है।
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Sumitranandan pant ka jivan parichay
जैसा कि सभी को पता है हिंदी साहित्य का भारतीय इतिहास में अमूल्य योगदान रहा है। भारत भूमि पर ऐसे कई लेखक और कवि हुए हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से समाज सुधार के कार्य अनेकों कार्यों के अलावा देश प्रेम के राग भी छेड़े है। उन्ही में से एक रचनाकार कवि सुमित्रानंदन पंत जी है। पंत को प्रकृति का चित्र चोर कवि कहा जाता है।

नाम | सुमित्रानंदन पन्त |
अन्य नाम | गोसाई दत्त |
जन्म | 20 मई 1900 |
जन्म स्थान | कौसानी गांव |
पिता का नाम | पंडित गंगा दंत पंथ |
माता का नाम | सरस्वती देवी |
प्रमुख रचनाएं | सत्यकाम, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, शिल्पी |
मृत्यु | 1977 इलाहाबाद |
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं?
सुमित्रानंदन पंत जी ने अनेक प्रकार की विधा में अपनी रचना को लिखा है, जिसमें से हम आपको कुछ रचनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि नीचे निम्नलिखित है:
सुमित्रानंदन पंत कविता संग्रह:- पल्लव, युगांतर, स्वर्ण धूलि, कला और बूढ़ा चांद, मुक्ति यज्ञ, युगवाणी, सत्य काम, ग्रंथि, ज्योत्सना, शिल्पी
सुमित्रानंदन पंत खंडकाव्य:- अवंगुठित, मेघनाथ वध, राजशेखर
सुमित्रानंदन पंत नाटक:- रजतरश्मि, शिल्पी, ज्योत्सना।
सुमित्रानंदन पंत उपन्यास:- हार
सुमित्रानंदन पंत की भासा शैली
भासा शैली :- इनकी भाषा में कमल कांत पदावली से युक्त सहज खड़ी बोली में पद लालायित का गुण विद्यमान है पंत जी की शैली में छायावादी काव्य शैली की समस्त विशेषताएं पर्याप्त रूप से विद्यमान है इन के काव्य में सौंदर्य एवं कल्पना के विविध रूपों का समावेश मिलता है।
इन्होंने गीतात्मक शैली अपनाई। सरलता, मधुरता, चित्रात्मकता, कोमलता और संगीतात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।
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