वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ:- सभी लोग महाभारत के बारे में तो जानते ही है। वेदव्यास जी महाभारत के रचियता हैं उन्होंने ही चरों वेदों और 18 पुराणों की रचना की ही। वेदों का पुनः संकलन करने के कारण ही उन्हें वेदव्यास नाम से पुकारा जाता है। वेदव्यास परम तपस्वी महा ज्ञानी और अमर ऋषि है। वे जन्म लेते ही व्यस्क हो गए थे। जन्म से ही महा ज्ञानी और परम तेजस्वी हुए उन्हें भगवन विष्णु के अवतार के रूप में भी माना जाता है।
वेदव्यास का रंग काला था, जिसकी वजह से उसका नाम कृष्ण रखा गया। यही कृष्ण आगे चलकर वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, उनकी माता कौन थी, यह सारी जानकारी आप उनके जन्म की कहानी के साथ जान सकते हैं। तो आइए जाने वेदव्यास के जन्म की कहानी।
वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ
वेदव्यास के जन्म की कहानी – प्राचीन समय की बात है द्वापर काल शुरू हो चुका था इस काल में एक समय पर उपरिचर नामक राजा हुए। उपरिचर बहुत ही बड़ा धर्मात्मा, सत्यवादी और प्रतापी राजा और सदा अपनी प्रजा के सुभचिंतक थे। राजा ने अपने कठोर तप से देवराज इंद्र को प्रसन्न कर एक विमान और कभी न सूखने वाली सुंदर माला वरदान रूप में प्राप्त की।
राजा सुन्दर गंध वाली वह माला अपने कंठ में धारण कर विमान में बैठकर आकाश में परिभ्रमण किया करता था। राजा जैसा उसकी रानी भी वैसी ही पवित्र हृदय वाली तथा बहुत सुंदर थी। रानी का नाम गिरिका था, वह अपने पति को बहुत ही प्रेम करती थी। ईश्वर के प्रति उसकी बहुत बड़ी आस्था थी। इसलिए वह हमेशा भजन, कीर्तन में लगी रहती थी।
एक दिन राजा उपरिचर अपनी पत्नी गिरिका से रमण करने का भाव मन में लिए उनके भवन में गए लेकिन उस समय गिरिका ऋतुमती हुई थी। तो राजा उनसे रमण किये बिना ही वन में आखेट पर निकल गए लेकिन उनके मन में अपनी पत्नी के प्रति प्रेम काम न हुआ और वे रानी के साथ रमण करने के बारे में ही सोचते रहे।
दोपहर का समय था। राजा वन में एक अशोक वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। उस समय शीतल और सुगंधित हवा चल रही थी। मृदुल स्वर में पक्षी गाना गा रहे थे। तब राजा का ध्यान रानी की ओर चला गया। वह रानी के साथ रमण के संबंध में मन ही मन सोचने लगा। राजा कामातुर हो उठा और उसका वीर्य स्खलित हो गया।
राजा ने सोचा उसका वीर्य व्यक्त नहीं जा सकता। अतः उसने अपने वीर्य को एक दोने में रखकर विमान में बैठे हुए बाज पक्षी को बुलाकर उसे कहा तुम इस दोने को ले जाकर मेरी रानी को दे दो। वह इसे अपने मार्ग में धारण कर लेगी। तब दोने को मुंह में दबाकर बाज राजा के भवन की ओर उड़ चला। जैसे ही बाज यमुना नदी के ऊपर से जा रहा था, दूसरे बाज की नजर उस पर पड़ गई। यह देख कर दूसरा बाज सोचने लगा कि बाज अपने मुख में कुछ खाने का सामान ले जा रहा है, क्यों ना मैं उसके मुंह से यह सामान छीन लूं। यह सोचकर बाज पहल बाज के उपर झपट्टा मारा। जिससे बाज के मुंह से दोना गिरकर यमुना नदी में बह गया।
दोने में रखा वीर्य यमुना नदी में बह गया। तभी एक मछली जो एक अप्सरा थी लेकिन एक श्राप के करण मछली बन नदी में रह रही थी उसने उस वीर्य को निगल लिया फ़लतः मछली गर्भवती हो गई। दासराज नामक मल्लाह को वह मछली शिकार में मिली। जब उसने मछली के पेट को बीचो-बीच से काटा तो उसके पेट से एक बालक और एक बालिका निकली। उसने दोनों बच्चे को उपरिचर को भेंट कर दिया। उपरिचर ने बालक को लेकर बालिका को दास को वापस लौटा दिया। दासराज उस बालिका को अपने घर ले जाकर उसका पालन पोषण करने लगा। दासराज ने बालिका का नाम सत्यवती रखा।
सत्यवती मछली के पेट में से उत्पन्न हुई थी, इसलिए उसके शरीर से मछली की गंध निकला करती थी। अतः लोग उसे मत्स्यगंधा भी कहते थे। मत्स्यगंधा धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह बहुत ही खूबसूरत थी। रात्रि को वह अपनी नाव पर बैठकर लोगों को इस पार से उस पार पहुंचाया करती थी।
एक दिन दोपहर के समय महर्षि पराशर वहां जा पहुंचे। मत्स्यगंधा को देखकर महर्षि मुग्ध हो गए। उन्होंने कहा सुंदरी तुम्हें अपूर्व सुख मिलेगा, तुम मेरे साथ रमन करों। तब मत्स्यगंधा ने उत्तर दिया महर्षि आप यह कैसी बातें कर रहे हैं। दोपहर का समय है, आसपास लोग बैठे हैं। मैं आपके साथ रमन कैसे कर सकती हूं। पराशर जी ने योग शक्ति से चारों ओर कुहरा कर दिया।
तब पराशर बोले अब हमें कोई नहीं देख सकता तुम निश्चिंत होकर मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लो। मत्स्यगंधा पुनः बोल उठी महर्षि मैं कुंवारी हूं। पिता की आज्ञा के अधीन हूं। आपके साथ रमण करने से मेरा कौमार्य नष्ट हो जाएगा। मैं समाज में लांछित बन जाऊंगी। पराशर जी ने उत्तर दिया, तुम चिंता मत करों मुझसे रमण करने के पश्चात तुम्हारा कौमार्य बना रहेगा।
गर्भवती होने पर भी गर्व का चिन्ह प्रकट नहीं होगा। मत्स्यगंधा फिर बोली, मेरे शरीर से मछली की गंध हमेशा निकलती रहती है आप मुझे वरदान दे कि वह गंध सुगंध के रूप में बदल जाए और चार कोष तक यह गंध फैलती रहे। पराशर जी ने तथास्तु कहा। तब मत्स्यगंधा के शरीर से कस्तूरी की गंध निकलने लगी। इस लिए उन्हें योजन गंधा के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
तो हमने आपको बताया कि वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ मुझे उम्मीद है कि अब आप इस विषय में काफी जान गए होंगें क्योंकि हमने आपकी बहुत ही विस्तार से वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ का वर्णन किया है।